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राजमा की खेती


 परिचय

राजमा की खेती रबी ऋतू में की जाती है यह भारत में उत्तर के मैदानी क्षेत्रो में अधिक उगाया जाता है मुख्य रूप से हिमालयन रीजन की के पहाड़ी क्षेत्रो तथा महाराष्ट्र के सतारा जिले में इसका उत्पादन अधिक किया जाता है।

जलवायु और भूमि

राजमा की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु और भूमि आवश्यक होती है?
राजमा को शीतोषण एवं समशीतोषण दोनों तरह की जलवायु में उगाया जा सकता है राजमा की अच्छी बढ़वार हेतु 10 से 27 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की आवश्यकता पड़ती है राजमा हल्की दोमट मिट्टी से लेकर भारी चिकनी मिट्टी तक में उगाया जा सकता है

प्रजातियाँ

राजमा की कौन-कौनसी उन्नतशील प्रजातियां है जिनका इस्तेमाल हमें खेती में करना चाहिए?
राजमा में प्रजातियां जैसे कि पी.डी.आर.14, इसे उदय भी कहते है, मालवीय 137, बी.एल.63, अम्बर, आई.आई.पी.आर.96-4, उत्कर्ष, आई.आई.पी.आर. 98-5, एच.पी.आर. 35, बी,एल 63 एवं अरुण है।

खेत की तैयारी

राजमा की खेती के लिए किस प्रकार से हमें अपने खेतों की तैयारी करनी चाहिए?
खरीफ की फसल के बाद खेत की पहली जुटाई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करनी चाहिए खेत को समतल करते हुए पाटा लगाकर भुरभुरा बना लेना चाहिए इसके पश्चात ही बुवाई करनी चाहिए

बीज बुवाई

राजमा की बुवाई में बीजों की मात्रा प्रति हेक्टेयर कितनी लगती है और बीजो का शोधन किस प्रकार से करे?
राजमा के बीज की मात्र 120 से 140 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लगती है। बीजोपचार 2 से 2.5 ग्राम थीरम से प्रति किलोग्राम बीज की मात्र के हिसाब से बीज शोधन करना चाहिए
राजमा की खेती के लिए बुवाई का उचित समय कब होता है और बुवाई किस विधि से बुवाई करनी चाहिए?
राजमा की बुवाई अक्टूबर का तीसरा और चौथा सप्ताह बुवाई हेतु सर्वोत्तम माना जाता है। इसकी बुवाई लाइनो में करनी चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 30 से 40 सेंटीमीटर रखते है, पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते है, इसकी बुवाई 8 से 10 सेंटीमीटर की गहराई पर करते है।

पोषण प्रबंधन

राजमा की खेती में खाद एवं उर्वरको का प्रयोग हमें कब करना चाहिए और कितनी मात्रा में करना चाहिए?
राजमा के लिए 120 किलोग्राम नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस एवं 30 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर तत्व के रूप में देना आवश्यक है। नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के समय तथा बची आधी नत्रजन की आधी मात्रा खड़ी फसल में देनी चाहिए। इसके साथ ही 20 किलोग्राम गंधक की मात्रा देने से लाभकारी परिणाम मिलते है। 20 प्रतिशत यूरिया के घोल का छिड़काव बुवाई के बाद 30 दिन तथा 50 दिन में करने पर उपज अच्छी मिलती है।

जल प्रबंधन

राजमा की फसल में सिंचाई कब करनी चाहिए और कितनी मात्रा में करनी चाहिए?
राजमा में 2 या 3 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है। बुवाई के 4 सप्ताह बाद प्रथम सिंचाई हल्की करनी चाहिए। बाद में सिंचाई एक माह बाद के अंतराल पर करनी चाहिए खेत में पानी कभी नहीं ठहरना चाहिए।

खरपतवार प्रबंधन

राजमा की फसल में निराई और गुड़ाई का सही समय क्या होता है और खरपतवार के नियंत्रण हेतु हमें क्या करना चाहिए?
प्रथम सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करनी चाहिए। गुड़ाई के समय थोड़ी मिट्टी पौधों पर चढ़ाना चाहिए ताकि पौधों पर फलियां लगाने पर पौधे गिर सके। खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के बाद तुरंत ही उगने से पहले पेंडामेथलीन का छिड़काव 3.3 लीटर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए।

रोग प्रबंधन

राजमा की फसल में कौन-कौन से रोग लगाने की सम्भावनाये होती है और उनके नियंत्रण हेतु हमें क्या उपाय करने चाहिए?
राजमा पर जैसे कि पत्तियो पर मुजैक दिखते ही रोगार या डेमेक्रांन को 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए। रोगी पौधों को प्रारम्भ में ही निकाल देना चाहिए साथ में डाईथेंन जेड 78 या एम् 45 को मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।

कीट प्रबंधन

राजमा की फसल में कौन-कौन से कीट लगते है और उनके रोकथाम के लिए हमें क्या उपाय करने चाहिए?
राजमा में जैसे कि सफ़ेद मक्खी एवं माहू कीट लगते है। इनके रोकने के लिए कीटनाशक 1.5 मिलीलीटर रोगार या डेमोक्रान का छिड़काव करना चाहिए

फसल कटाई

राजमा की कटाई और मड़ाई का सही समय क्या है?
राजमा की जब फलियां 125 से 130 दिन में जब पककर तैयार हो जाये तब कटाई करके एक दिन के लिए खेत में पडी रहने देना चाहिए। बाद में मड़ाई करके दाना निकाल लेना चाहिए। अधिक सूखने पर फलियों से दाना चटककर बीज गिरने लगते है।

पैदावार

राजमा की फसल में प्रति हेक्टेयर कितनी उपज प्राप्त होने की सम्भावना होती है?
तकनीकियो का प्रयोग करते हुए राजमा की खेती में सामान्य रूप से 15 से 20 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है

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