Latest News

728*90

सोयाबीन की खेती

परिचय

सोयाबीन की खेती मैदानी क्षेत्रों में अभी हाल में ही कुछ वर्षो से शुरू हुई है। इसमे 40 से 50 प्रतिशत प्रोटीन तथा 20 से 22 प्रतिशत तक तेल की मात्रा पाई जाती है। इसके प्रयोग से शरीर को प्रचुर मात्रा में प्रोटीन मिलती है। प्रदेश के बुंदेलखंड के सभी जनपदों एवम बदाऊ, रामपुर, बरेली, शाहजहांपुर, मेरठ आदि जिलो में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है।

जलवायु और भूमि

सोयाबीन की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु और भूमि की आवश्यकता होती है?
सोयाबीन की खेती के लिए गर्म तथा तर जलवायु होना चाहिए। इसकी खेती लिए सबसे उत्तम भूमि दोमट होती है लेकिन बुंदेलखंड की सभी प्रकार की भूमि में सफलतापूर्वक इसकी खेती की जा सकती है।

प्रजातियाँ

सोयाबीन की कौन-कौन सी उन्नतशील प्रजातियाँ पाई जाती है?
इसमे बहुत सी प्रजातियाँ पाई जाती है जैसे की- पी. के. 772, 262, 416, पी. एस. 564, 1024, 1042, जे.एस. 71-5, 93-5, 72-44, 75-46, जे.एस.2, 235, पूसा16, 20 ऍम यू एस46 एवं 37 प्रजाति है।

खेत की तैयारी

सोयाबीन की फसल उगाने के लिए अपने खेतों की तैयारी हम किस प्रकार करे बताईये?
खेत की पहली जुताई गर्मियों में मिट्टी पलटने वाले हल से गहरी करनी चाहिए जिससे हानिकारक कीड़े-मकोड़े आदि ख़त्म हो जावे और गोबर की सड़ी खाद 100 से 150 कुंतल प्रति हेक्टेयर मिला देनी चाहिए। दो-तीन जुताई कल्टीवेटर से करने के पश्चात खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए।

बीज बुवाई

बुवाई हेतु बीज की मात्रा कितनी निर्धारित होनी चाहिए और बीजो का शोधन हमारे किसान भाई किस प्रकार करे?
बुवाई वाले बीज का अंकुरण 75 से 80 प्रतिशत से कम नहीं होना चाहिए। ऐसे बीज की मात्रा 75 से 80 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लगती है। बीजोपचार हेतु बीज को बुवाई से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 ग्राम थीरम या 1 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील चूर्ण के मिश्रण से शोधित कर लेना चाहिए या थायोफिनेट मिथायल 1.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से शोधित करना चाहिए जिन खेतों में सोयाबीन की खेती पहली बार या काफी समय बाद बोया जा रहा है वहां पर बीज को राईजोबियम कल्चर से भी उपचारित करना चाहिए। एक पैकेट कल्चर को 10 किलोग्राम बीज के उपचारित या ऊपर से छिड़ककर हाथ से हलके मिलाये जिससे की बीज के ऊपर एक हल्की परत बन जाए एस बीज की बुवाई तुरंत कर देनी चाहिए। तेज धूप से बचाव करना अति आवश्यक है तेज धूप से जीवाणु मरने की आशंका रहती है।
सोयाबीन की बुवाई का सही समय और विधि क्या है और किस तरह से इस्तेमाल हमारे किसान भाई करे?
मैदानी क्षेत्रों में बुवाई का उचित समय 20 जून से 10 जुलाई तक है बुवाई लाईनों में करनी चाहिए। लाइन से लाइन की दूरी 45 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 3 से 5 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बीज को 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई पर बुवाई करनी चाहिए इसकी बुवाई अधिक गहरी नहीं करनी चाहिए।

पोषण प्रबंधन

सोयाबीन की फसल में खाद और उर्वरक का प्रयोग हमें कितनी मात्रा में करना चाहिए, कब करना चाहिए और किस प्रकार से करना चाहिए?
उर्वरको का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जाना चाहिए। यदि मृदा परीक्षण नहीं कराया गया है तो उन्नतशील प्रजातियों के लिए नत्रजन 20 किलोग्राम, फास्फोरस 80 किलोग्राम तथा पोटाश 40 किलोग्राम तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर प्रयोग करना चाहिए। खाद की पूरी मात्रा अंतिम जुताई में हल के पीछे 6 से 7 सेंटीमीटर की गहराई पर डालनी चाहिए बुवाई के 30 -35 दिन बाद सोयाबीन के कुछ पौधे उखाड़कर देखना चाहिए की जड़ों में ग्रंथियां बनी है या नहीं यदि ग्रंथियां बनी हो तो 30 किलोग्राम नत्रजन की मात्रा प्रति हेक्टेयर की दर से फूल आने के एक सप्ताह पहले फसल में डालना चाहिए। 200 किलोग्राम जिप्सम का भी प्रयोग करना चाहिए जिससे उपज अच्छी प्राप्त हो सके।

जल प्रबंधन

फसल में सिंचाई हमें कब करनी चाहिए उसका सही समय क्या है?
सोयाबीन की फसल वर्षा पर आधारित है यदि वर्षा हो तो फूल एवम फली आने पर सिंचाई करना अति आवश्यक है। यदि वर्षा का पानी खेत में अधिक भर जाता है तो पानी को निकलने का प्रबंध करना अति आवश्यक है नहीं तो फसल पर कुप्रभाव पड़ता है इससे पैदावार कम होने की संभावना बढ़ जाती है।

खरपतवार प्रबंधन

सोयाबीन की निराई-गुडाई और उस पर खरपतवारों का नियंत्रण हमारे किसान भाई किस प्रकार करे?
सोयाबीन के खेत को निराई-गुडाई करके खरपतवारों से मुक्त रखना चाहिए। पहली बुवाई के 25 दिन बाद दूसरी 45 दिन बाद निराई-गुडाई करनी चाहिए ।  रसायनों का प्रयोग करने के लिए इसकी बुवाई से पहले 24 घंटे के अन्दर फ्लुक्लोरेफिलीन 45 .सी. 2.25 लीटर मात्रा को 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करके भूमि में मिला देना चाहिए या सोयाबीन की बुवाई के तुरंत बाद एलाक्लोर 50 .सी. 4 लीटर अथवा मेटोलाक्लोर 50 .सी. 2 लीटर को 700 से 800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिडकाव करना चाहिए इससे खरपतवारों का जमाव नहीं होता है।

रोग प्रबंधन

कौन-कौन से रोग लगते है सोयाबीन की फसल में रोगों पर नियंत्रण हम किस तरह से स्थापित करे किसान भाईयो को बताईये?
सोयाबीन में पीला चित्रवर्ण रोग तथा सुत्रक्रमि रोग लगते है। चित्रवर्ण को नियंत्रण हेतु रोग रोधी प्रजातियों की बुवाई करनी चाहिए रोगी पौधों को उखाड़ देना चाहिए या मिथायल डिमेटान 25 .सी 1.25 लीटर 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए या डाईमिथोयेट 30 .सी 1 लीटर प्रति हेक्टेयर छिडकाव 1000 लीटर पानी के साथ करना चाहिए। सुत्रक्रमि के नियंत्रण हेतु 10 किलोग्राम फोरेट 10 जी. बुवाई के पूर्व प्रयोग करे अथवा नीम की खाली 15 से 20 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।

कीट प्रबंधन

सोयाबीन की फसल में कौन-कौन से कीट लगने की संभावना होती है और उन पर हम किस तरह से नियंत्रण स्थापित करे?
सोयाबीन में कई तरह के कीट लगते है जैसे की फली छेदक कीट, ग्रीन सेमीलूप कीट, बिहार सेमी सूंडी, गार्डन बीटल आदि लगते है। इनके नियंत्रण हेतु अवरोधी प्रजातियों को प्रयोग करना चाहिए। रसायनों का प्रयोग करना चाहिए जैसे की क्लोरपयारिफोस 20 .सी. 1.5 लीटर या क्युनालफास 25 .सी. 1.5 लीटर प्रति हेक्टेयर 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिडकाव करना चाहिए इससे कीटों का नियंत्रण होता है।

फसल कटाई

सोयाबीन की फसल में कटाई और मड़ाई का सही समय क्या है, कैसे करनी चाहिए?
सोयाबीन की फलियाँ पककर पूरी तरह से पौधा सहित सूख जावे तभी कटाई करनी चाहिए। इसके पश्चात भी खेत में ही दो-तीन दिन डालकर सूखने पर मड़ाई करनी चाहिए।

पैदावार

सोयाबीन की फसल में लगभग प्रति हेक्टेयर कितनी उपज प्राप्त होने की संभावना होती है?

सामान्य रूप से 25 से 30 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है लेकिन कुछ ऐसी भी प्रजातियाँ है जिनकी उपज अधिक भी प्राप्त होती है जैसे की पी.के. 472, 416 एवम पी.एस.1024 व् 1042 की पैदावार 30 से 35 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त हो सकती है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

1

1

Recent Post

1