भारत में गेहूँ
एक मुख्य फसल
है, गेहूँ का
लगभग 97% क्षेत्र सिंचित है,
गेहूँ का प्रयोग
मनुष्य अपने जीवन
यापन हेतु मुख्यत
रोटी के रूप
में प्रयोग करते
हैं, जिसमे प्रोटीन
प्रचुर मात्रा में पायी
जाती हैI भारत
में पंजाब, हरियाणा
एवं उत्तर प्रदेश
मुख्य फसल उत्पादक
क्षेत्र हैंI
प्रजातियाँ
गेहूँ की खेती के लिए कौन कौन सी प्रमुख प्रजातियाँ होती हैं?
गेहूँ की प्रजातियों
का चुनाव भूमि
एवं साधनों की
दशा एवं स्थित
के अनुसार किया
जाता है, मुख्यतः
तीन प्रकार की
प्रजातिया होती है
सिंचित दशा वाली,
असिंचित दशा वाली
एवं उसरीली भूमि
की, आसिंचित दशा
वाली प्रजातियाँ निम्न
हैं-इसमे मगहर
के 8027, इंद्रा के 8962, गोमती
के 9465, के 9644, मन्दाकिनी के
9251, एवं एच डी
आर 77 आदि हैंI
सिंचित दशा वाली
प्रजातियाँ- सिंचित दशा में
दो प्रकार की
प्रजातियाँ पायी जाती
हैं, एक तो
समय से बुवाई
के लिए- इसमे
देवा के 9107, एच
पी 1731, राज्य लक्ष्मी, नरेन्द्र
गेहूँ 1012, उजियार के 9006, डी
एल 784-3, (वैशाली) भी कहतें
हैं, एच् यू
डब्लू 468, एच् यू
डब्लू 510, एच् डी
2888, यू पी 2382, पी बी
डब्लू 443, पी बी
डब्लू 343, एच्
डी 2824 आदि हैंI
देर से बुवाई
के लिए त्रिवेणी
के 8020, सोनाली एच् पी
1633 एच् डी 2643, गंगा, डी
वी डब्लू 14, के
9162, के 9533, एच् पी
1744, नरेन्द्र गेहूँ 1014, नरेन्द्र गेहूँ
2036, नरेन्द्र गेहूँ 1076, यू पी
2425, के 9423, के 9903, एच् डब्लू
2045,पी बी डब्लू
373,पी बी डब्लू
16 आदि हैंI उसरीली
भूमि के लिए
के आर एल
1-4, के आर एल
19, राज 3077, लोक 1, प्रसाद के
8434, एन डब्लू 1067, आदि हैं,
उपर्युक्त प्रजातियाँ अपने खेत
एवं दशा को
समझकर चयन करना
चाहिएI
उपयुक्त जलवायु
गेहूँ की खेती करने के लिए किस प्रकार की जलवायु एवं भूमि की आवश्यकता होती है ?
गेहूँ की खेती
के लिए समशीतोषण
जलवायु की आवश्यकता
होती है, इसकी
खेती के लिए
अनुकूल तापमान बुवाई के
समय 20-25 डिग्री सेंटीग्रेट उपयुक्त
माना जाता है,
गेहूँ की खेती
मुख्यत सिंचाई पर आधारित
होती है गेहूँ
की खेती के
लिए दोमट भूमि
सर्वोत्तम मानी जाती
है, लेकिन इसकी
खेती बलुई
दोमट,भारी दोमट,
मटियार तथा मार
एवं कावर भूमि
में की जा
सकती हैI साधनों
की उपलब्धता के
आधार पर हर
तरह की भूमि
में गेहूँ की
खेती की जा
सकती हैI
गेहूँ की खेती हेतु हमारे किसान भाई अपने खेत किस प्रकार से तैयार करें?
गेहूँ की बुवाई
अधिकतर धान की
फसल के बाद
ही की जाती
है, पहली जुताई
मिटटी पलटने वाले
हल से तथा
बाद में डिस्क
हैरो या कल्टीवेटर
से 2-3 जुताईयां करके खेत
को समतल करते
हुए भुरभुरा बना
लेना चाहिए, डिस्क
हैरो से धान
के ठूंठे कट
कर छोटे छोटे
टुकड़ों में हो
जाते हैं इन्हे
शीघ्र सडाने के
लिए 20-25 कि०ग्रा० यूरिया प्रति
हैक्टर कि दर
से पहली जुताई
में अवश्य दे
देनी चाहिएI इससे
ठूंठे, जड़ें सड़ जाती
हैं ट्रैक्टर चालित
रोटावेटर से एक
ही जुताई द्वारा
खेत पूर्ण रूप
से तैयार हो
जाता हैI
बीज बुवाई
गेहूँ कि खेती की बीजदर प्रति हैक्टर कितनी लगती है, और उसका बीज शोधन हमारे किसान भाई किस प्रकार करें?
गेहूँ कि बीजदर
लाइन से बुवाई
करने पर 100 कि०ग्रा०
प्रति हैक्टर तथा
मोटा दाना 125 कि०ग्रा०
प्रति हैक्टर तथा
छिडकाव से बुवाई
कि दशा से
125 कि०ग्रा० सामान्य तथा मोटा
दाना 150 कि०ग्रा० प्रति हैक्टर
कि दर से
प्रयोग करते हैं,
बुवाई के पहले
बीजशोधन अवश्य करना चाहिए
बीजशोधन के लिए
बाविस्टिन, कार्बेन्डाजिम कि 2 ग्राम
मात्रा प्रति कि०ग्रा० कि
दर से बीज
शोधित करके ही
बीज की बुवाई
करनी चाहिए
I
गेहूँ की फसल हेतु बुवाई को किस समय करें और उसके लिए किस प्रकार की विधि का प्रयोग करें ?
गेहूँ की बुवाई
समय से एवं
पर्याप्त नमी पर
करनी चाहिए अंन्यथा
उपज में कमी
हो जाती हैI
जैसे-जैसे बुवाई
में बिलम्ब होता
है वैसे-वैसे
पैदावार में गिरावट
आती जाती है,
गेहूँ की बुवाई
सीड्रिल से करनी
चाहिए तथा गेहूँ
की बुवाई हमेशा
लाइन में करें
I सयुंक्त प्रजातियों की बुवाई
अक्तूबर के प्रथम
पक्ष से द्वितीय
पक्ष तक उपयुक्त
नमी में बुवाई
करनी चाहिए, अब
आता है सिंचित
दशा इसमे की
चार पानी देने
वाली हैं समय
से अर्थात 15-25 नवम्बर,
सिंचित दशा में
ही तीन पानी
वाली प्रजातियों के
लिए 15 नवंबर से 10 दिसंबर
तक उचित नमी
में बुवाई करनी
चाहिएI और सिंचित
दशा में जो
देर से बुवाई
करने वाली प्रजातियाँ
हैं वो 15-25 दिसम्बर तक
उचित नमी में
बुवाई करनी चाहिए,
उसरीली भूमि में
जिन प्रजातियों की
बुवाई की जाती
है वे 15 अक्टूबर
के आस पास
उचित नमी में
बुवाई अवश्य कर
देना चाहिए, अब
आता है किस
विधि से बुवाई
करें, गेहूँ की
बुवाई देशी हल
के पीछे लाइनों
में करनी चाहिए
या फर्टीसीड्रिल से
भूमि में उचित
नमी पर करना
लाभदायक है, पंतनगर
सीड्रिल बीज व्
खाद सीड्रिल से
बुवाई करना अत्यंत
लाभदायक हैI
जल प्रबंधन
गेहूँ की फसल में सिंचाई कब और कितनी करनी चाहिए ?
सामान्यतः गेहूँ की अच्छी
उपज प्राप्त करने
के लिए 6 सिचाईयां
की आवश्यकता पड़ती
है ये निम्न
अवस्थाओ में करनी
चाहिए, पहली क्राउन
रूट या ताजमूल
अवस्था में बुवाई
के 20-25 दिन बाद,
दूसरी टिलरिंग या
कल्ले निकलते समय
बुवाई के 40-45 दिन
बाद, तीसरी सिंचाई
दीर्घ संघ या
गांठे बनते समय
बुवाई के 60-65 दिन
बाद, तथा चौथी
सिंचाई फ्लावरिंग स्टेज या
पुष्पावस्था बुवाई के 80-85 दिन
बाद एवं पाचवी
सिंचाई मिल्किंग स्टेज या
दुग्धावस्था बुवाई के 100-105 दिन
बाद, आखिरी सिंचाई
यानि छठी दाना
भरते समय बुवाई
के 115-120 दिन बाद
सिंचाई करनी चाहिएI
पोषण प्रबंधन
गेहूँ की फसल में हमें किन उर्वरको का प्रयोग करना चाहिए, और कब करना चाहिए, साथ ही कितनी मात्रा में करना चाहिए?
किसान भाइयों उर्वरकों का
प्रयोग मृदा परीक्षण
के आधार पर
करना चाहिए, गेहूँ
की अच्छी उपज
के लिए खरीफ
की फसल के
बाद भूमि में
150 कि०ग्रा० नत्रजन, 60 कि०ग्रा० फास्फोरस,
तथा 40 कि०ग्रा० पोटाश प्रति
हैक्टर तथा देर
से बुवाई करने
पर 80 कि०ग्रा० नत्रजन,
60 कि०ग्रा० फास्फोरस, तथा 40 कि०ग्रा०
पोटाश, अच्छी उपज के
लिए 60 कुंतल प्रति हैक्टर
सड़ी गोबर की
खाद का प्रयोग
करना चाहिएI गोबर
की खाद एवं
आधी नत्रजन की
मात्रा तथा पोटाश
की पूरी मात्रा
खेत की तैयारी
के समय आखिरी
जुताई में या
बुवाई के समय
खाद का प्रयोग
करना चाहिए, शेष
नत्रजन की आधी
मात्रा पहली सिंचाई
पर तथा बची
शेष मात्रा दूसरी
सिंचाई पर प्रयोग
करनी चाहिए I
खरपतवार प्रबंधन
गेहूँ की फसल में खरपतवार का नियंत्रण किस प्रकार से करना चाहिए?
गेहूँ की फसल
में रबी के
सभी खरपतवार जैसे
बथुआ, प्याजी, खरतुआ,
हिरनखुरी, चटरी, मटरी, सैंजी,
अंकरा, कृष्णनील, गेहुंसा, तथा
जंगली जई,आदि
खरपतवार लगते हैंI
इनकी रोकथाम निराई-
गुड़ाई करके की
जा सकती है,
लेकिन कुछ रसायनों
का प्रयोग करके
रोकथाम किया जा
सकता है जो
की निम्न है
जैसे की पेंडामेथेलिन
30 ई सी 3.3 लीटर
की मात्रा 800-1000 लीटर
पानी में मिलकर
फ़्लैटफैन नोजिल से प्रति
हैक्टर की दर
से छिडकाव बुवाई
के बाद 1-2 दिन
तक करना चाहिएI
जिससे की जमाव
खरपतवारों का न
हो सके, चौड़ी
पत्ती वाले खरपतवारो
को नष्ट करने
के लिए बुवाई
के 30-35 दिन बाद
एवं पहली सिंचाई
के एक सप्ताह
बाद 2,4,डी सोडियम
साल्ट 80% डब्लू. पी. की
मात्रा 625 ग्राम 600-800 लीटर पानी
में मिलकर 35-40 दिन
बाद बुवाई के
फ़्लैटफैन नोजिल से छिडकाव
करना चाहिएI इसके
बाद जहाँ पर
चौड़ी एवं संकरी
पत्ती दोनों ही
खरपतवार हों वहां
पर सल्फोसल्फ्युरान 75% 32 ऍम.
एल. प्रति हैक्टर
इसके साथ ही
मेटासल्फ्युरान मिथाइल 5 ग्राम डब्लू.
जी. 40 ग्राम प्रति हैक्टर
बुवाई के 30-35 दिन
बाद छिडकाव करना
चाहिए, इससे खरपतवार
नहीं उगते है
या उगते हैं
तो नष्ट हो
जाते हैं I
रोग प्रबंधन
गेहूँ की फसल में कौन-कौन से रोग लगने की संभावनाएं होती हैं, और उनका नियंत्रण किस प्रकार से करें ?
खड़ी फसल में
बहुत से रोग
लगते हैं,जैसे
अल्टरनेरिया, गेरुई या रतुआ
एवं ब्लाइट का
प्रकोप होता है
जिससे भारी नुकसान
हो जाता है
इसमे निम्न प्रकार
के रोग और
लगते हैं जैसे
काली गेरुई, भूरी
गेरुई, पीली गेरुई,
सेंहू, कण्डुआ, स्टाम्प ब्लाच,
करनालबंट इसमे मुख्य
रूप से झुलसा
रोग लगता है
पत्तियों पर कुछ
पीले भूरे रंग
के लिए हुए
धब्बे दिखाई देते
हैं, ये बाद
में किनारे पर
कत्थई भूरे रंग
के तथा बीच
में हल्के भूरे
रंग के हो
जाते हैं , इनकी
रोकथाम के लिए
मैन्कोजेब 2 किग्रा० प्रति हैक्टर
की दर से
या प्रापिकोनाजोल 25 % ई.
सी. की आधा
लीटर मात्रा 1000 लीटर
पानी में घोलकर
छिडकाव करना चाहिए,
इसमे गेरुई या
रतुआ मुख्य रूप
से लगता है,गेरुई भूरे पीले
या काले रंग
के, काली गेरुई
पत्ती तथा तना
दोनों में लगती
है इसकी रोकथाम
के लिए मैन्कोजेब
2 किग्रा० या जिनेब
25% ई. सी. आधा
लीटर, 1000 लीटर पानी
में घोलकर प्रति
हैक्टर छिडकाव करना चाहिएI
यदि झुलसा, रतुआ,
कर्नालबंट तीनो रोगों
की संका हो
तो प्रोपिकोनाजोल का
छिडकाव करना अति
आवश्यक है I
गेहूँ की फसल में कौन कौन से कीट लगते हैं, और उनका नियंत्रण वो किस प्रकार करें?
गेहूँ की फसल
में शुरू में
दीमक कीट बहुत
ही नुकसान पहुंचता
है इसकी रोकथाम
के लिए दीमक
प्रकोपित क्षेत्र में नीम
की खली १०
कुंतल प्रति हैक्टर
की दर से
खेत की तैयारी
के समय प्रयोग
करना चाहिए तथा
पूर्व में बोई
गई फसल के
अवशेष को नष्ट
करना अति आवश्यक
है, इसके साथ
ही माहू भी
गेहूँ की फसल
में लगती है,
ये पत्तियों तथा
बालियों का रस
चूसते हैं, ये
पंखहीन तथा पंखयुक्त
हरे रंग के
होते हैं, सैनिक
कीट भी लगता
है पूर्ण विकसित
सुंडी लगभग 40 मि०मी०
लम्बी बादामी रंग
की होती हैI
यह पत्तियों को
खाकर हानि पहुंचाती
है, इसके साथ
साथ गुलाबी तना
बेधक कीट लगता
है ये अण्डो
से निकलने वाली
सुंडी भूरे गुलाबी
रंग की लगभग
5 मिली मीटर की
लम्बी होती है,
इसके काटने से
फल की वानस्पतिक
बढ़वार रुक जाती
है, इन सभी
कीटों की रोकथाम
के लिए कीटनाशी
जैसे क्यूनालफास 25 ई.
सी. की 1.5-2.0 लीटर
मात्रा 700-800 लीटर पानी
में घोलकर प्रति
हैक्टर की दर
से छिडकाव करना
चाहिए, या सैपरमेथ्रिन
750 मी०ली० या फेंवेलेरेट
1 लीटर 700-800 लीटर पानी
में घोलकर प्रति
हैक्टर की दर
से छिडकाव करना
चाहिएI कीटों के साथ
साथ चूहे भी
लगते हैं, ये
खड़ी फसल में
नुकसान पहुँचातें हैं, चूहों
के लिए जिंक
फास्फाइट या बेरियम
कार्बोनेट के बने
जहरीले चारे का
प्रयोग करना चाहिए,
इसमे जहरीला चारा
बनाने के लिए
1 भाग दवा 1 भाग
सरसों का तेल
तथा 48 भाग दाना
मिलाकर बनाया जाता है
जो कि खेत
में रखकर प्रयोग
करतें हैं I
फसल कटाई
गेहूँ कि कटाई कब और किस प्रकार करनी चाहिए ?
फसल पकते ही
बिना प्रतीक्षा किये
हुए कटाई करके
तुरंत ही मड़ाई
कर दाना निकाल
लेना चाहिए, और
भूसा व दाना
यथा स्थान पर
रखना चाहिए, अत्यधिक
क्षेत्रो वाली फसल
कि कटाई कम्बाईन
से करनी चाहिए
इसमे कटाई व
मड़ाई एक साथ
हो जाती है
जब कम्बाईन से
कटाई कि जाती
हैI
गेहूँ कि पैदावार और भण्डारण किस प्रकार करें?
मौसम का बिना
इंतजार किये हुए
उपज को बखारी
या बोरो में
भर कर साफ
सुथरे स्थान पर
सुरक्षित कर सूखी
नीम कि पत्ती
का बिछावन डालकर
करना चहिए या
रसायन का भी
प्रयोग करना चाहिएI
गेहूँ कि उपज प्रति हैक्टर कितनी मात्रा में प्राप्त हो जाती है?
असिंचित दशा में
35-40 कुंतल प्रति हैक्टर होती
है, सिंचित दशा
में समय से
बुवाई करने पर
55-60 कुंतल प्रति हैक्टर पैदावार
मिलती है, तथा
सिंचित देर से
बुवाई करने पर
40-45 कुंतल प्रति हैक्टर तथा
उसरीली भूमि में
30-40 कुंतल प्रति हैक्टर पैदावार
प्राप्त होती है
I
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