पपीता शीघ्र ही तैयार
होने वाला बहुत
ही उपयोगी फल
है इसमे बहुत
ही पौष्टिक गुण
पाए जाते है
हमारे देश में
पपीता गृह वाटिका
में उगाना प्रचलित
है इसकी पैदावार
शीतकटिबन्धीय क्षेत्रो को छोड़कर
पूरे देश में
की जाती है
लेकिन अब इसकी
खेती व्यवसायक रूप
में की जाती
है यह स्वस्थ
के लिए बहुत
ही लाभदायक होता
है इसमे पपेन
एवं पैक्टिन नामक
पदार्थ पाया जाता
है पपेन का
दवाइयों में प्रयोग
किया जाता है
पपेन पपीते के
कच्चे फलो से
निकल जाता है
इसे एक बार
लगा देने पर
दो फसल ली
जाती है इसकी
कुल आयु पौने
तीन साल होती
है।
जलवायु और भूमि
पपीते की खेती के लिए किस प्रकार की अनुकूल जलवायु और भूमि होनी चाहिए?
पपीते की सबसे
अच्छी फसल उष्ण
कटिबन्धीय क्षेत्रो में होती
है। लेकिन समशीतोष्ण
क्षेत्रो में भी
अच्छी पैदावार देता
है। शुष्क गर्म
जलवायु में इसके
फल अधिक मीठे
होते है परन्तु
अधिक नमी इसके
फलो के गुणों
को ख़राब कर
देती है। पपीता
किसी भी प्रकार
की भूमि में
उगाया जा सकता
है लेकिन इसकी
सबसे अच्छी खेती
जीवांश युक्त एवं उचित
जल निकास वाली
बलुई दोमट एवम
दोमट मिट्टी में
की जाती है।
पपीते की खेती करने के लिए कौन सी उन्नतशील प्रजातियाँ है जिनका इस्तेमाल हम अपनी खेती में करे?
उन्नतशील प्रजातियाँ जैसे की
पूसा डेलीसस 1-15, पूसा
मैजिस्टी 22-3, पूसा जायंट
1-45-वी, पूसा ड्वार्फ1-45-डी, पूसा
नन्हा या म्युटेंट
डुवार्फ, सी०ओ०-1, सी०ओ०-2, सी०ओ०-3,
सी०ओ०-4, कुर्ग हनी, एवम
हनीडीयू ये उन्नतशील
प्रजातियाँ उपलब्ध है।
पौधशाला
पपीते की पौध किस प्रकार तैयार करे?
पपीते की खेती
में पौध तैयार
करने के लिए
पहले पौधे 3 मीटर
लम्बी 1 मीटर चौड़ी
तथा 10 सेमी० ऊँची क्यारी
में या गमले
या पालीथीन बैग
में पौध तैयार
करते है। बीज
क़ी बुवाई से
पहले क्यारी को
10% फार्मेलड़ीहाईड के घोल
का छिडकाव करके
उपचारित करते है।
इसके बाद बीज
1 सेमी० गहरे तथा
10 सेमी० क़ी दूरी
पर बीज बोते
है इन पौधों
को रोपाई हेतु
60 दिन बाद जब
15-25 सेमी० ऊँचे हो
जाये तब इनकी
पौध की रोपाई
करनी चाहिए।
पपीता के पौधों का रोपण किस प्रकार करे?
भारत में पपीता
की तीन मौसम
में रोपाई क़ी
जाती है तथा
पौध उसी तरह
से 60 दिन पहले
तैयार क़ी जाती
है सबसे पहले
जून एवम जुलाई
में, इसके बाद
सितम्बर -अक्टूबर में तथा
अंत में फरवरी
एवम मार्च में
रोपण किया जाता
है दक्षिण भारत
मे साधारणत् फरवरी
-मार्च में रोपाई
क़ी जाती है
खेत में पौधों
क़ी रोपाई दोपहर
बाद 3 बजे सायं
से करनी चाहिए।
रोपाई के बाद
पानी लगाना अतिआवश्यक
है तैयार किए
गए गढ़ढ़ो में
प्रत्येक गढढ़ो में 2 या
3 पौधे थोड़ी थोड़ी दूरी
पर लगाना चाहिए
जब तक अच्छी
तरह से पौधे
स्थापित न हो
जाये तब तक
प्रतिदिन 3 बजे सायं
के बाद हल्की
सिचाई करनी चाहिए
फूल आने पर
10% नर पौधे को
छोड़ कर सभी
नर पौधे को
काट कर अलग
कर देना चाहिए।
पोषण प्रबंधन
रोपाई के बाद बारी आती है खाद एवं उर्वरको के प्रयोग की तो डाक्टर यादव ये बताईये की उनकी कितनी मात्रा प्रयोग करनी चाहिए और कब करनी चाहिए?
पपीता एक शीघ्र
बढने एवं फल
देने वाला पौधा
है जिसके करण
आधिक तत्व क़ी
आवश्यकता पड़ती है अच्छी
उपज प्राप्त करने
के लिए 250 ग्राम
नत्रजन 150 ग्राम फास्फोरस तथा
250 ग्राम पोटाश प्रति पौधा
के हिसाब से
प्रति वर्ष देना
चाहिए यह मात्रा
पौधे के चारो
और 2 से 4 बार
में थोड़े -थोड़े
समय के अन्तराल
पर देनी चाहिए।
पपीते के पौधे पर कब और कैसे और कितनी मिट्टी चढ़ानी चाहिए ?
पपीते पर मिट्टी
चढाना अतिआवश्यक है।
प्रत्येक गढ्ढे में एक
पौधा को रखने
के बाद पौधे
क़ी जड़ के
आस पास 30 सेमी०
क़ी गोलाई में
मिट्टी को ऊँचा
चढ़ा देते है
ताकि पेड़ के
पास सिचाई का
पानी आधिक न
लग सके तथा
पौधे को सीधा
खड़ा रखते है।
जल प्रबंधन
पपीते क़ी फसल में कब और कितनी मात्रा में सिचाई देनी चाहिए?
पपीता के लिए
सिचाई का उचित
प्रवंन्ध होना आवश्यक
है गर्मियों में
6 से 7 दिन के
अन्तराल पर तथा
सर्दियों में 10-12 दिन के
अन्तराल पर सिचाई
करनी चाहिए वर्षा
ऋतू में पानी
न बरसने पर
आवश्यकता अनुसार सिचाई करनी
चाहिए सिचाई का
पानी पौधे के
सीधे संपर्क में
नहीं आना चाहिए।
पपीते क़ी फसल में निराई और गुड़ाई हमें कैसे करनी चाहिए?
लगातार सिचाई करते रहने
से खेत के
गढ़ढ़ो क़ी मिट्टी
बहुत कड़ी हो
जाती है। जिससे
पौधे क़ी वृद्धि
पर कुप्रभाव पड़ता
है अत: हर
2-3 सिचाई के बाद
थालो क़ी हल्की
निराई गुड़ाई करनी
चाहिए, जिससे भूमि में
हवा एवं पानी
का अच्छा संचार
बना रहे।
रोग प्रबंधन
पपीते क़ी फसल में कौन कौन से रोग लगते है और उनका नियंत्रण किस प्रकार करना चाहिए?
पपीते के पौधों
में मुजैक,लीफ
कर्ल ,डिस्टोसर्न, रिंगस्पॉट,
जड़ एवं तना
सडन ,एन्थ्रेक्नोज एवं
कली तथा पुष्प
वृंत का सड़ना
आदि रोग लगते
है। इनके नियंत्रण
में वोर्डोमिक्सचर 5:5:20 के
अनुपात का पेड़ो
पर सडन गलन
को खरोचकर लेप
करना चाहिए अन्य
रोग के लिए
व्लाईटाक्स 3 ग्राम या डाईथेन
एम्-45, 2 ग्राम प्रति लीटर
अथवा मैन्कोजेब या
जिनेव 0.2% से 0.25 % का पानी
में घोल बनाकर
छिडकाव करना चाहिए
अथवा कापर आक्सीक्लोराइट
3 ग्राम या व्रासीकाल
2 ग्राम प्रति लीटर पानी
में मिलाकर छिडकाव
करना चाहिए।
कीट प्रबंधन
रोग को फैलाने वाले वह कीट कौन कौन से है और उसके लिए हम क्या उपाय करे?
पपीते के पौधों
को कीटो से
कम नुकसान पहुचता
है फिर भी
कुछ कीड़े लगते
है जैसे माहू,
रेड स्पाईडर माईट,
निमेटोड आदि है।
नियंत्रण के लिए
डाईमेथोएट 30 ई. सी.1.5
मिली लीटर या
फास्फोमिडान 0.5 मिली लीटर
प्रति लीटर पानी
में मिलाकर छिड़काव
करने से माहू
आदि का नियंत्रण
होता है।
फसल कटाई
जब फसल हमारी पूरी तरह तैयार हो जाती है तो उसकी तुड़ाई का सही समय क्या है और यह तोड़ाई किस प्रकार करे हमारे किसान भाई?
फलो के पकने
पर चिडियों से
बचाना अति आवश्यक
है अत: फल
पकने से पहले
ही तोडना चाहिए
जब फलो के
ऊपरी सतह पर
खरोच कर देखे
तो दूध जैसा
तरल पदार्थ क़ी
पानी जैसा निकले
और फल का
रंग परिवर्तित होने
लगे तब समझ
लेना चाहिए कि
फल पक गए
है और तुड़ाई
कर लेना चाहिए
फलो को तोड़ते
समय किसी प्रकार
कि खरोच या
दाग धब्बे आदि
न पड़ने पाए
नहीं तो फल
सड़कर ख़राब हो
जाते है।
पपीता क़ी फलो क़ी तुड़ाई के लेने के बाद बाजार ले जाने हेतु पैकिग की व्यवस्था किस प्रकार करे?
फलो को सुरक्षित
तोड़ने के बाद
फलो पर कागज
या अख़बार आदि
से लपेट कर
अलग अलग प्रति
फल को किसी
लकड़ी या गत्ते
के बाक्स में
मुलायम कागज क़ी
कतरन आदि को
बिछाकर फल रखने
चाहिए और बाक्स
को बन्द करके
बाजार तक भेजना
चाहिए ताकि फल
ख़राब न हो
और अच्छे भाव
बाजार में मिल
सके।
पपीता कि पैदावार या उसकी उपज के लिए प्रति पौधा तथा प्रति हेक्टर कितनी मात्रा हमारे किसान भाई प्राप्त कर लेते है?
पैदावार मिट्टी किस्म, जलवायु
और उचित देखभाल
पर निर्भर करती
है समुचित व्यवस्था
पर प्रति पेड़
एक मौसम में
औसत उपज में
फल 35-50 किग्रा प्राप्त होते
है तथा 15-20 टन
प्रति हेक्टर उपज
प्राप्त होती है।
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