शलजम की खेती
बिहार, हरियाणा, हिमांचल प्रदेश,
पंजाब तथा तमिलनाडू
में अधिक की
जाती है |
जलवायु और भूमि
शलजम की खेती के लिए की स प्रकार की जलवायु एवं भूमि होनी चाहिए?
शलजम की खेती
शीतोष्ण एवं समशीतोष्ण
दोनों ही तरह
की जलवायु में
की जा सकती
है, इसकी खेती
10 से 15 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान
पर सफलता पूर्वक
की जा सकती
है इसकी खेती
सभी प्रकार की
भूमि की जा
सकती है, लेकिन
दोमट भूमि सबसे
अधिक उत्तम होती
है, इसकी खेती
में उचित जल
निकास होना अतिआवश्यक
है |
प्रजातियाँ
शलजम की खेती के लिए कौन कौन सी उन्नतशील प्रजातियाँ पाई जाती है?
शलजम की प्रजातियाँ
दो समूह में
पायी जाती है,
प्रथम एशियाटिक या
ट्रॉपिकल उष्ण कटिबंधीय
प्रजातियाँ, जैसे पूसा
कंचन, पूसा स्वेती
तथा पंजाब सफ़ेद
आदि है, दूसरी
यूरोपियन या टेम्परटे
(उष्णकटिबंधीय)- जैसे की
पूसा स्वर्णिमा, पूसा
कंचन, स्नोबॉल तथा
पूसा कंचन आदि
है|
खेत की तैयारी
शलजम की खेती हेतु खेत की तैयारी किस प्रकार करनी चाहिए, किसान भाइयो को ?
खेत की तैयारी
के लिए पहली
जुताई मिटटी पलटने
वाले हल से
करनी चाहिए, इसके
बाद दो तीन
जुताई देशी हल
या कल्टीवेटर से
करते हुए पाटा
लगाकर समतल बनाते
हुए खेत को
भुरभुरा बना लेना
चाहिए, खेत की
तैयारी करते हुए
आखिरी जुताई में
200 से 250 कुन्तल सड़ी गोबर
की खाद अच्छी
तरह से मिला
देना चाहिए |
बीज बुवाई
शलजम की खेती हेतु बीज की दर प्रति हेक्टेयर कितनी लगती है तथा बीज का शोधन किस प्रकार करना चाहिए?
शलजम की बुवाई
में 3 से 4 किलो
ग्राम बीज एक
हैक्टेयर के लिए
पर्याप्त होता है,
बुवाई लाइनो में
करनी चाहिए, बीज
शोधन थीरम या
बैबिस्टीन या कैप्टान
2.5 ग्राम प्रति किग्रा बीज
की दर से
शोधित करके ही
बुवाई करना चाहिए
|
शलजम की फसल की बुवाई कब और किस विधि से करनी चाहिए?
पहाड़ी क्षेत्रो में जुलाई
से अक्टूबर तक
की जाती है,
मैदानी क्षेत्रो में सितम्बर
से अक्टूबर तक
बुवाई की जाती
है, ज्यादातर लाइनो
में बुवाई की
जाती है, लेकिन
बरसात के ऋतु
में मेड़ो पर
बुवाई की जाती
है, लाइन से
लाइन की दूरी
30 से 45 सेंटीमीटर तथा पौधे
से पौधे की
दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखी
जाती है, 1.5 से
2 सेंटीमीटर की गहराई
पर बुवाई करते
है|
शलजम की फसल में किन -किन उर्वरको का प्रयोग कब और कैसे कितनी मात्रा में करनी चाहिए?
खेत की तैयारी
के समय आखिरी
जुताई में 200 से
250 कुन्तल सड़ी गोबर
की खाद अच्छी
तरह से मिला
देना चाहिए, इसके
साथ ही 70 से
100 किलो ग्राम नाइट्रोजन 50 किलो
ग्राम फास्फोरस एवं
50 किलो ग्राम पोटाश तत्व
के रूप में
देना चाहिए, नाइट्रोजन
की आधी मात्रा
तथा फास्फोरस एवं
पोटाश की पूरी
मात्रा खेत तैयारी
के समय बेसल
ड्रेसिंग के रूप
में देना चाहिए
लेकिन फास्फोरस एवं
पोटाश 7 से 8 सेंटीमीटर
गहराई पर देना
चाहिए, शेष नाइट्रोजन
की आधी मात्रा
दो बार में
टापड्रेसिंग के रूप
में देना चाहिए,
पहली बार आधी
मात्रा बची आधी
से जड़ो के
बनते समय तथा
शेष मात्रा दूसरी
बार में जड़ो
के विकास होने
के समय देना
चाहिए |
जल प्रबंधन
शलजम की फसल में सिचाई कितनी और कब करनी चाहिए ?
शलजम की बुवाई
के 8 से 10 दिन
बाद पहली सिचाई
करते है तथा
आवश्यकतानुसार सिचाई 10 से 12 दिन
के अन्तराल पर
सिचाई करते रहना
चाहिए |
खरपतवार प्रबंधन
शलजम की फसल में निराई गुड़ाई तथा खरपतवारो का नियंत्रण हमारे किसान भाई कैसे करें?
शलजम में 2 से 3 निराई
एवं गुड़ाई कि
आवश्यकता पड़ती है,
निराई गुड़ाई के
समय पर ही
थिनिंग करनी चाहिए,
बुवाई के 25 से
30 दिन बाद मिटटी
चढ़ाते है, उसी
समय टाप ड्रेसिंग
नत्रजन की करते
है, यदि अधिक
खरपतवार उगते है,
तो प्रीइमरजेंस बीड़ीसाइड
का प्रयोग करना
चाहिए, जैसे कि
बुवाई के 1से
2 दिन के अन्दर
पेंडिमिथलीन 30 प्रतिशत की 3 लीटर
मात्रा को 700 से 800 लीटर
पानी में घोलकर
प्रति हैक्टेयर के
हिसाब से छिड़काव
करना चाहिए |
रोग प्रबंधन
शलजम की फसल में कौन-कौन से रोग लगते है तथा उनका नियंत्रण हमारे किसान भाइयो को किस तरह से करना चाहिए?
शलजम में व्हाइट
रस्ट, सरकोस्पोरा, पीला
रोग, आल्टरनेरिया, पर्ण
अंगमारी रोग लगते
है, इन्हे रोकने
के लिए फफूंद
नाशक दवा डाइथेन
एम- 45 या जेड-
78 का 0.2 प्रतिशत घोल से
छिड़काव करना चाहिए,
बीज शोधित करके
बोना चाहिए, 0.2 प्रतिशत
ब्लॉइटाक्स का छिड़काव
करना चाहिए, पीला
रोग के नियंत्रण
हेतु इंडोसेल 2 मिली
लीटर प्रति लीटर
या इन्डोधान 2 मिली
लीटर प्रति लीटर
पानी में घोलकर
छिड़काव करना चाहिए
|
कीट प्रबंधन
शलजम की फसल में कौन-कौन से कीट लगते है तथा उनका नियंत्रण किस तरह से करना चाहिए?
शलजम में माहू,
मूँगी, बालदार कीडा, अर्द्द
गोलाकार सुडी, आरामख्खी, डाइमंड
बैकमोथ कीट लगते
है, इनकी रोकथाम
हेतु मैलाथियान 0.05 प्रतिशत
तथा 0.05 प्रतिशत क्लोरोवास का
प्रयोग करना चाहिए
तथा इंडोधान, थायोडान,
इंडोसेल का 1.25 लीटर प्रति
हैक्टेयर के हिसाब
से छिड़काव करना
चाहिए 10 प्रतिशत बी० एच०
सी या 4 प्रतिशत
कारबेराल चूर्ण का बुरकाव
करना चाहिए |
फसल कटाई
शलजम की कटाई कब करना चाहिए हमारे किसान भाइयो को?
जब शलजम की
जड़े खाने लायक
आकर की अर्थात
5 से 7 सेंटीमीटर के डाईमीटर
हो तब इसकी
खुदाई करनी चाहिए,
यदि 10 सेंटी मीटर डाईमीटर
से अधिक बडी
जड़े हो जाने
पर इनमे तीखापन
आ जाता है,
खुदाई से पहले
हल्की सिचाई कर
देना चाहिए जिससे
की खुदाई में
किसी प्रकार का
नुकसान न हो
सके |
शलजम की फसल से प्रति हैक्टेयर कितनी पैदावार होती है?
शलजम की फसल
से औसतन उपज
200 से 250 कुन्तल प्रति हैक्टेयर
प्राप्त होती है
|
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