मटर रबी की
एक प्रमुख दलहनी
फसल है, विश्व
में इसकी खेती
भारत में सर्वाधिक
होती है, मुख्य
रूप से दाल
एवं सब्जी में
प्रयोग की जाती
है, इसमे प्रोटीन
और विटामिन प्रचुर
मात्रा में पाई
जाती है।
मटर की खेती के लिए कौन कौन सी प्रमुख प्रजातियाँ हैं?
मटर की बुवाई
के लिए संतुत
प्रजातियाँ - जैसे की
रचना, शिखा, मालवीय
मटर-15, पन्त मटर-5,
प्रकाश, जय, सपना,
आदर्श, पन्त पी-42,
तथा अमन प्रजातियाँ
जिनमे किसी एक
प्रजाति का चुनाव
करके खेती सफलता
पूर्वक की जा
सकती है।
उपयुक्त भूमि
मटर की खेती के लिए भूमि किस प्रकार की होनी चाहिए ?
मटर की फसल
के लिए दोमट
तथा हल्की दोमट
भूमि उपयुक्त होती
है।
उपयुक्त जलवायु
मटर की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु की आवश्यकता होती है?
मटर की खेती
के लिए अनुकूलतम
तापमान 25 से 30 डिग्री सेन्टीग्रेड
उपुक्त माना जाता
है।
खेत की तैयारी
मटर की खेती के लिए भूमि की तैयारी हम किस प्रकार से करें?
मटर की खेत
की तैयारी प्रथम
जुताई मिट्टी पलटने
वाले हल से
तथा दो तीन
जुताईयां देशी हल
या कल्टीवेटर से
करके खेत में
पाटा लगा कर
समतल कर लेना
चाहिए।
मटर की खेती के लिए बीज की प्रति हैक्टर कितनी मात्रा प्रयोग करें?
मटर की बुवाई
के लिए बीज
की मात्रा लम्बे
पौधों की प्रजातियाँ
के लिए 80 से
100 किलोग्राम प्रति हैक्टर तथा
बौनी प्रजातियाँ के
लिए 125 किलोग्राम बीज प्रति
हैक्टर की दर
से बुवाई करनी
चाहिए।
मटर के बीज की बुवाई का सही समय क्या है और किस तरहं से करे?
मटर की बुवाई
का समय अक्टूबर
के मध्य से
नवम्बर के मध्य
तक हल के
पीछे बौनी प्रजातियाँ
को 20 सेन्टी मीटर
तथा लम्बी प्रजातियों
को 30 सेन्टी मीटर
की दूरी पर
बुवाई करनी चाहिए।
मटर की खेती के लिए बीज का बीजोपचार कब और कैसे करना चाहिए?
फसल को बीज
जनित रोगों के
बचाव के लिए
थिरम 2 ग्राम या मैन्कोजेब
3 ग्राम या 4 ग्राम
ट्राईकोडरमा से प्रति
किलोग्राम बीज को
बुवाई से पहले
शोधित करना अति
आवश्यक है, बीज
शोधन के बाद
बीज को 200 ग्राम
राईजोवियम कल्चर से 10 किलोग्राम
बीज को उपचारित
करके बोना चाहिए।
जल प्रबंधन
मटर की फसल में सिचाई हमें कब करनी चाहिए?
मटर की फसल
में सिचाई आवश्यकतानुसार
केवल करनी चाहिए
यदि जाड़े में
वर्षा न हो
तो फूल आने
के समय 1 सिचाई
करना अति आवश्यक
है।
पोषण प्रबंधन
मटर की खेती में उर्वरको का प्रयोग कितनी मात्रा में करें?
मटर की फसल
में नाइट्रोजन 20 किलोग्राम,
फास्फोरस 60 किलोग्राम, पोटाश 40 किलोग्राम
तथा गंधक 20 किलोग्राम
प्रति हेक्टर की
दर से तत्व
के रूप में
प्रयोग करना चाहिए
तथा मटर की
बौनी प्रजातियों के
लिए बुवाई के
समय 20 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति
हेक्टर की दर
से अतिरिक्त देना
चाहिए।
खरपतवार प्रबंधन
मटर की खेती में खरपतवार का नियंत्रण हम कैसे करें?
मटर की फसल
में खरपतवार नियंत्रण
के लिए वासालिन
नामक रसायन की
1.65 से 2.2 लीटर मात्रा
1000 लीटर पानी में
मिलाकर प्रति हेक्टर की
दर से बुवाई
से पहले छिडकाव
करें अथवा पेंडामेथालिन
रसायन की 3.33 लीटर
मात्रा को 1000 लीटर पानी
में प्रति हेक्टर
की दर से
मिलाकर बुवाई के बाद
छिडकाव करने से
फसल मेंखरपतवार पर
नियंत्रण किया जा
सकता है।
मटर की फसल के प्रमुख रोग कौन कौन से है और उसका नियंत्रण किस तरह से करें?
मटर की फसल
में प्रमुख रोग
हैं जैसे बुकनी
रोग या पाऊडरी
मिल्डयू इस रोग
से पत्तियां फलियाँ
तथा तने पर
सफ़ेद चूर्ण सा
फैलता है और
बाद में पत्तियाँ
ब्राउन या काली
होकर सुख जाती
है, रोग उपचार
के लिए कार्बेन्डाजीम
रसायन की 500 ग्राम
या ट्राईकोमार्क 80 ई
सी 500 मिली लीटर
दवा को 600 से
800 लीटर पानी में
घोलकर प्रति हैक्टर
की दर से
छिडकाव 10-15 दिन के
अन्तराल पर करना
चाहिए, इसके अलावा
दूसरा लगता है
उकठा रोग, इस
रोग में पौधों
की पत्तियों नीचे
से ऊपर की
ओर पीली पड़ने
लगती है और
पूरा पौधा सुख
जाता है, इसके
उपचार के लिए
बीज को 2.5 ग्राम
कार्बेन्डाजीम अथवा वैनोमिल
प्रति किलो ग्राम
बीज में मिलकर
बीज कीबुवाई करनी
चाहिए, तीसरा रोग लगता
है, सफ़ेद गलन
रोग, इस रोग
से पूरा पौधा
सफ़ेद रंग का
होकर मर जाता
है, पौधे के
ग्रसित भागो पर
सफ़ेद रंग की
फफूदी उग जाती
है, इसके उपचार
के लिए कार्बेन्डाजीम
0.05% दवा का 15 दिन के
अन्तराल पर छिडकाव
करना चाहिए, इसमे
झुलसा रोग बहुत
ज्यादा लगता है,
इस रोग में
पौधों के नीचे
पत्तियों पर किनारे
से भूरे रंग
के धब्बे बनते
है, इसके उपचार
के लिए 2.5 ग्राम
थीरम नामक दवा
से प्रति किलो
ग्राम बीजोपचार करना
चाहिए, बाद में
फसल पर मैन्कोजेब
0.2% घोल बनाकर छिडकाव करना
चाहिए, इसके अलावा
बीज गलन रोग
लगता है, इस
रोग में बीज
अंकुरण से पहले
या अंकुरण के
समय सड़ना प्रारम्भ
हो जाता है,
इस रोग की
रोकथाम के लिए
2.5 थीरम अथवा कैप्टान
2 ग्राम प्रति किलोग्राम की
दर से बीज
उपचार करना लाभदायक
होता है।
प्रमुख कीट कौन कौन से है, जिससे मटर फसल में नुकसान हो सकता है उसका नियंत्रण कैसे करें?
इसमें दो तरह
के कीट लगते
है, पहला तने
की मक्खी, यह
काले रंग की
घरेलु मक्खी तरह
होती है, इसका
प्रकोप फसल उगने
के साथ शुरू
हो जाता है,
इसकी नवजात गिडारे
पत्तियों से होते
हुए तने में
घुस जाते है,
जिससे फसल को
अत्यधिक नुकसान होता है
दूसरा है, फली
वेधक कीट यह
गहरे भूरे रंग
का पतंगा होता
है, सुडी गुलाबी
रंग की होती
है, इस कीट
की गिडारे फलियों
में बन रहे
दानो को खाकर
नुकसान पहुचती है, मटर
की फसल को
कीटो से बचाने
के लिए फसल
के कूडो में
कार्बेफ्युरान 15 किलो ग्राम
अथवा फोरेट 5 किलोग्राम
प्रति हेक्टेअर की
दर से प्रयोग
करे या फसल
जमते ही सप्ताह
के अन्तराल पर
5% प्रकोपित पौधे दिखते
है, डाईमेंथोट 30 ई
सी 1 लीटर मात्रा
को 1000 लीटर पानी
में मिलाकर छिडकाव
करें, फसल में
फली वेधक का
प्रकोप होने पर
फेन्बेलरेट 750 मिलीलीटर मात्रा या
मोनोक्रोटोफास 1 लीटर मात्रा
को 1000 लीटर पानी
में मिलाकर छिडकाव
करना चाहिए, जिससे
की इन कीटो
का प्रकोप न
हो सके।
फसल कटाई
मटर की फसल की कटाई का सही समय क्या है और उसका भण्डारण हम किस तरह से करें ?
मटर की फसल
को पूर्ण पकाने
पर ही कटाई
करनी चाहिए, कटाई
के पश्चात फसल
की मड़ाई करके
दाना निकाल लेना
चाहिए, मटर को
भण्डारण में कीटो
से बचाने के
लिए एल्युमिनियम फास्फाइड
3 गोलिया प्रति मीट्रिक टन
की दर से
प्रयोग करें, जिससे भण्डारण
में कीटो से
होने वाली हानि
से बचाया जा
सके ।
पैदावार
मटर की खेती में जो प्रति हैक्टर उपज प्राप्त होती है वह कितनी होती है?
मटर की फसल
में औसतन उपज
25 से 30 कुन्तल प्रति हैक्टर
प्राप्त हो जाती
है।
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