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सौंफ की खेती

परिचय

सौंफ की खेती मुख्या रूप से मसाले के रूप में की जाती हैI सौंफ के बीजो से तेल भी निकाला जता है, इसकी खेती मुख्य रूप से गुजरात, मध्य प्रदेश, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, आँध्रप्रदेश, पंजाब तथा हरियाणा में की जाती हैI

जलवायु और भूमि

सौंफ की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु एवं भूमि होनी चाहिए?
इसकी खेती शरद ऋतु में अच्छी तरह से की जाती है, फसल पकते समय शुष्क जलवायु की आवश्यकता पड़ती हैI बीज बनते समय अधिक ठंडक की आवश्यकता नहीं पड़ती हैI सौंफ की बलुई भूमि को छोड़कर हर प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन जल निकास का उचित प्रबंध होना अति आवश्यक है, फिर भी दोमट भूमि सर्वोत्तम होती हैI

प्रजातियाँ

सौंफ की उन्नतशील प्रजातियां कौन-कौन सी पाई जाती है?
सौंफ की बहुत सी प्रजातियां पाई जाती है जैसे कि सी.ओ.1, गुजरात फनेल 1, आर.ऍफ़ 35,आर.ऍफ़101,आर.ऍफ़125, एन पी.डी. 32 एवं एन पी.डी.186, एन पी.टी.163, एन पी. के.1, एन पी.जे.26, एन पी.जे.269 एवं एन पी.जे131, पी.ऍफ़ 35, उदयपुर ऍफ़ 31, उदयपुर ऍफ़ 32, एम्. एस.1 तथा जी.ऍफ़.1 आदि है

खेत की तैयारी

सौंफ की खेती हेतु खेत की तैयारी किस प्रकार करनी चाहिए?
पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में 3 से 4 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करके खेत को समतल बनाकर पाटा लगते हुए एक सा बना लिया जाता हैI आख़िरी जुताई में 150 से 200 कुंतल सड़ी गोबर की खाद को मिलाकर खेत को पाटा लगाकर समतल कर लिया जाता हैI

बीज बुवाई

सौंफ की बुवाई में बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर कितनी लगती है?
बीज द्वारा सीधे बुवाई करने पर लगभग 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता हैI पौध दवारा रोपाई करने पर लगभग 4 से 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता हैI
सौंफ की बुवाई किस तरह तथा किस विधि से करनी चाहिए ?
अक्टूबर माह बुवाई के लिए सर्वोत्तम माना जाता हैI लेकिन 15 सितम्बर से 15 अक्टूबर तक बुवाई कर देना चाहिएI बुवाई लाइनो में करना चाहिए तथा छिटककर भी बुवाई की जाती हैI तथा लाइनो में इसकी रोपाई भी की जाती हैI रोपाई में लाइन से लाइन की दूरी 60 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर रखनी चाहिएI जब पौध रोपण दवारा खेती की जाती है तो 7 से 8 सप्ताह पहले रोपाई से पौध डालकर की जाती हैI

पोषण प्रबंधन

सौंफ की खेती में खाद एवं उर्वरको की मात्रा प्रति हेक्टेयर कितनी लगती है तथा इनका प्रयोग हमें कब-कब करना चाहिए?
150 से 200 कुंतल सड़ी गोबर की खाद के साथ-साथ 80 किलोग्रान नत्रजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर देना चाहिएI नत्रजन की आधी मात्रा फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय आख़िरी जुटाई के समय देना चाहिएI तथा शेष नत्रजन की आधी मात्रा की 1/2 बुवाई के 60 दिन बाद तथा शेष 1/2 भाग 90 दिन बाद खड़ी फसल में देना चाहिएI

जल प्रबंधन

सौंफ की फसल की सिंचाई कब और कैसे करे?
पौध रोपाई के बाद पहली हल्की सिंचाई करनी चाहिए आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिएI बीज बनते तथा पकते समय अवश्य सिंचाई करनी चाहिएI

खरपतवार प्रबंधन

सौंफ की फसल की निराई-गुड़ाई कब और कैसे करनी चाहिए?
पहली सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करना आवश्यक रहता है तथा 45 से 50 दिन बाद दूसरी निराई गुड़ाई करना आवश्यक होता हैI बड़ी फसल होने पर निराई-गुड़ाई करते समय पौधे टूटने का भय रहता हैI

रोग प्रबंधन

सौंफ की फसल में कौन-कौन से रोग लगते है उनकी रोकथाम किस तरह से करे?
सौंफ में पाउडरी मिल्ड्यू, उकठा या विल्ट रोग लगते हैI इनको रोकने के लिए 0.3 प्रतिशत जल ग्राही सल्फर अथवा 0.06 प्रतिशत कैराथीन के घोल का छिड़काव करना चाहिए तथा अवरोधी प्रजातियों का भी प्रयोग करना चाहिएI

कीट प्रबंधन

सौंफ की फसल में कौन-कौन से कीट लगते है तथा उनकी रोकथाम किस तरह से करे?
सौंफ में अधिकतर माहू तथा पत्ती खाने वाले कीट लगते है इनको नियंत्रण के लिए 0.2 प्रतिशत कार्बारिल घोल का छिड़काव करना चाहिएI

फसल कटाई

सौंफ की कटाई बीज के लिए तथा हरी खाने के लिए कब और कैसे करनी चाहिए?
सौंफ के अम्बेल जब पूरी तरह विकसित होकर और बीज पूरी तरह जब पककर सूख जावे तभी गुच्छो की कटाई करनी चाहिएI कटाई करके एक से दो दिन सूर्य की धुप में सुखाना चाहिए तथा हरा रंग रखने के लिए 8 से 10 दिन छाया में सूखाना चाहिएI हरी सौंफ प्राप्त करने हेतु फसल में जब अम्बेल के फूल आने के 30 से 40 दिन गुच्छो की कटाई करनी चाहिएI कटाई के बाद छाया में ही अच्छी तरह सूखा लेना चाहिएI

पैदावार

सौंफ का बीजोत्पाद प्रति हेक्टेयर कितनी मात्रा में प्राप्त होता है?

जब पूरे बीजो की कटाई करते है तो 10 से 15 कुंतल प्रति हेक्टेयर पैदावार प्राप्त होती है और जब कुछ हरे बीज प्राप्त करने के बाद पकाकर फसल काटते है तो पैदावार कम होकर 9 से 10 कुंतल प्रति हेक्टेयर रह जाती हैI

धनिया की खेती

जलवायु और भूमि

धनिया की खेती के लिए जलवायु एवं भूमि किस प्रकार की होनी चाहिए?
धनिया की खेती हरी पत्तियों के प्रयोग हेतु लगभग पूरे वर्ष की जाती है लेकिन बीज प्राप्त करने हेतु इसकी खेती रबी की फसल के साथ में करते है इसके लिए स्प्रिंग सीजन अच्छा रहता हैI धनिया की खेती हेतु दोमट मिट्टी सर्वोत्तम होती है अच्छे जीवांशयुक्त भारी भूमि में भी उगाई जा सकती है लेकिन जल निकास होना अति आवश्यक हैI

प्रजातियाँ

धनियां की उन्नतशील प्रजातियां कौन-कौन सी होती है?
धनियां में प्रजातियां जैसे की पूसा सेलेक्शन360, आर.सी.1, यू.डी.20 , यू.डी.21, पंत हरितमा, साधना, स्वाती, डी.एच.5, सी.जी.1, सी.जी.2, सिंधु , सी.ओ.1 , सी.ओ.2 एवं सी.ओ.3, सी.एस.287, आर. डी.44 एवं आजाद धनियां1 तथा आर.सी.आर.20, 41, 435, 436 एवं 446 आदि हैI

खेत की तैयारी

धनियां की खेती करने हेतु हमें खेत की तैयारी किस प्रकार से करनी चाहिए?
खेत की तैयारी के लिए खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा बाद में तीन से चार जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करते है खेत को समतल करके पाटा लगाकर भुरभुरा बना लेना चाहिएI आख़री जुताई में 100 से 120 कुन्तल सड़ी गोबर की खाद को मिला देना चाहिएI

बीज बुवाई

धनिया की बुवाई में बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर कितनी लगती है तथा बीज शोधन किस प्रकार करना चाहिए?
बीज की मात्रा बुवाई एवं सिंचाई की दशा पर निर्भर करती हैI सिंचित दशा में बीज 12 से 15 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर तथा असिंचित दशा में 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पड़ता हैI बीज को 3 ग्राम थीरम या 2 ग्राम बेविस्टीन से प्रति किलोग्राम के हिसाब से बुवाई करने से पहले शोधित कर लेना चाहिएI बीज को बोने से पहले 12 घंटे पानी में भिगोकर बुवाई करनी चाहिएI
धनिया की बुवाई कब करनी चाहिए तथा बुवाई में कौन सी विधि अपनानी चाहिए?
मैदानी क्षेत्रो में अक्टूबर से नवम्बर में बुवाई की जाती हैI विधि में बुवाई लाइन से लाइन की दूरी 20 से 30 सेंटीमीटर तथा पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखते हुए 3 से 5 सेंटीमीटर गहराई पर बुवाई करनी चाहिएI

पोषण प्रबंधन

धनिया की फसल में खाद एवं उर्वरको की मात्रा कितनी लगती है तथा कब प्रयोग करना चाहिए?
खेत की तैयारी करते समय 100 से 120 कुंतल गोबर की सड़ी खाद आख़िरी जुताई में मिला देना चाहिएI इसके साथ ही 60 किलोग्राम नत्रजन, 40 किलोग्राम फास्फोरस तथा 40 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप प्रति हेक्टेयर देना चाहिएI नत्रजन की आधी मात्रा एवं फास्फोरस तथा पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी करते समय आख़िरी जुताई में बेसल ड्रेसिंग में देना चाहिएI नत्रजन की शेष मात्रा का 1/2 भाग 25 दिन बाद बुवाई के तथा 1/2 भाग 40 दिन बाद बुवाई के बाद देना चाहिएI

जल प्रबंधन

धनिया की फसल में सिंचाई कब और कैसे करनी चाहिए?
पूरी फसल में 4 - 5 सिंचाई की आवश्यकता पड़ती हैI पहली सिंचाई बुवाई के 30 से 35 दिन बाद करनी चाहिएI दूसरी 60 से 70 दिन, तीसरी 80 से 90 दिन, चौथी 100 से 105 दिन एवं पांचवी 120 दिन बाद करनी चाहिएI

खरपतवार प्रबंधन

धनिया की फसल की निराई-गुड़ाई कब करनी चाहिए और खरपतवार पर नियंत्रण हम किस प्रकार से कर सकते है?
पहली सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करना चाहिए दूसरी पहली के 30 दिन बाद करना चाहिएI खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरंत बाद एक दो दिन के अंदर 3.3 लीटर पेंडीमेथालीन को 800 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिएI

रोग प्रबंधन

धनिया की फसल में कौन-कौन से रोग लगते है तथा उनका नियंत्रण हमें किस प्रकार से करना चाहिए?
धनिया में पाउडरी मिल्ड्यू, उकठा या विल्ट तथा तना पिटका रोग लगते हैI इनको रोकने के लिए 0.3 प्रतिशत जल ग्राही सल्फर अथवा 0.06 प्रतिशत कैराथीन के घोल का छिड़काव करना चाहिए तथा अवरोधी प्रजातियों का प्रयोग करना चाहिए इसके साथ ही फसल चक्र भी अपनाना चाहिएI

कीट प्रबंधन

धनिया की फसल में जो कीट लग जाते है उन पर नियंत्रण हम कैसे पाये?
धनिया में माहू या एफिड तथा पत्ती खाने वाले कीट लगते है इनको नियंत्रण करने हेतु 0.2 प्रतिशत कार्बेरिल घोल का छिड़काव करना चाहिए जिससे इन कीटो का असर न हो सकेI

फसल कटाई

धनिया की फसल की कटाई एवं मड़ाई कब करनी चाहिए?
हरी पत्तियो को बड़ी सावधानी से तुड़ाई करनी चाहिए जिससे कि तना सुरक्षित रहे एस तरह दो बार पत्तियां तोड़नी चाहिए लेकिन कभी-कभी पूरा पौधा भी हरी पत्तियो के प्रयोग में लाते है बीज प्राप्त करने हेतु जब पौधे पर बीज पककर सूख जावे तभी कटाई की जाती है और एक दो दिन खेत में डालकर सुखाने के बाद बीज की पिटाई करके अलग कर लिया जाता हैI

पैदावार

धनिया की फसल से हरी पत्तिया एवं बीज की उपज कितनी प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है?

हरी पत्तियो की उपज 125 से 140 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है तथा 10 से 12 कुंतल सूखी धनिया के बीज प्राप्त होते हैI

मेथी की खेती

परिचय

मेथी की खेती पूरे भारतवर्ष में की जाती है, इसका सब्जी में केवल पत्तियों का प्रयोग किया जाता है इसके साथ ही बीजो का प्रयोग मशाले के रूप में किया जाता हैI इसकी खेती मुख्यरूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, पंजाब एवं उत्तर प्रदेश में की जाती हैI मेथी में प्रोटीन के साथ-साथ विटामिन ए एवं विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैI

जलवायु और भूमि

मेथी की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु एवं भूमि होनी चाहिए?
मेथी शरद ऋतु की फसल है, इसका उत्पादन रबी की फसल में किया जाता है, यह अधिक वर्षा वाले स्थानो पर कम उगाई जाती हैI मेथी के लिए दोमट एवं बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है, जिसमे जल निकास का उचित प्रबंध होना आवश्यक है, इसकी खेती के लिए भूमि का पी.एच. 6 से 7 होना चाहिएI

प्रजातियाँ

मेंथी की उन्नतशील प्रजातियां कौन-कौन सी होती है?
मेंथी की उन्नतशील प्रजातियां जैसे कि पूसा अर्ली बंचिंग, कसूरी मेंथी, लेम सेलेक्सन1, राजेंद्र क्रांति, हिसार सोनाली, पंत रागनी, एम् एच-103, सी.ओ-1, आर.ऍम टी-1 एवं आर.ऍम टी-143 आदि हैI

खेत की तैयारी

मेंथी की खेती हेतु खेत की तैयारी किस प्रकार से करनी चाहिए?
खेत की तैयारी में पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद, दो-तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करके, खेत में पाटा लगाकर समतल एवं भुरभुरा बना लेना चाहिएI खेत की आख़िरी जुताई में 100 से 150 कुंतल प्रति हेक्टेयर की दर से सड़ी गोबर की खाद को मिला देना चाहिएI

बीज बुवाई

मेंथी की बुवाई में बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर कितनी लगती है तथा बीज शोधन किस प्रकार से करना चाहिए?
मेथी की बुवाई में 20 से 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बीज लगता है, कसूरी मेंथी की बुवाई में मात्र 20 किलोग्राम ही बीज प्रति हेक्टेयर लगता हैI बीजशोधन थीरम 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या बेविस्टीन 2 ग्राम या सेरोसेन या केप्टान 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीज को शोधित कर बुवाई करनी चाहिएI
मेंथी की बुवाई किस समय तथा किस विधि से करना चाहिए?
मेंथी की बुवाई सितम्बर से अक्टूबर तक की जाती है, फिर भी देर होने पर नवम्बर के दूसरे सप्ताह तक की जा सकती हैI इसकी बुवाई छिटकवा विधि से भी की जाती है, लेकिन बुवाई लाइनो में ही करनी चाहिए, लाइन से लाइन की दूरी 25 से 30 सेंटीमीटर एवं पौधे से पौधे की दूरी 5 से 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिएI

पोषण प्रबंधन

मेथी की खेती में खाद एवं उर्वरको की मात्रा प्रति हेक्टेयर कितनी लगती है तथा उनका प्रयोग हमें कब-कब करना चाहिए?
सड़ी गोबर की खाद 100 से 150 कुंतल प्रति हेक्टेयर खेत की तैयारी के समय आख़िरी जुताई मे देनी चाहिए, इसके साथ ही 40 किलोग्राम नत्रजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 50 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टेयर तत्व के रूप में देना चाहिएI फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा खेत की तैयारी करते समय बेसल ड्रेसिंग में तथा नत्रजन की आधी मात्रा दो भागो में टॉप ड्रेसिंग में देना चाहिएI पहली बार 25 से 30 दिन के बाद तथा दूसरे 40 से 45 दिन बुवाई के बाद खड़ी फसल में शेष आधा -आधा करके देना चाहिएI

खरपतवार प्रबंधन

मेथी की फसल में निराई-गुड़ाई कब करनी चाहिए तथा खरपतवार नियंत्रण किस प्रकार से करना चाहिए?
पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 25 से 30 दिन बाद तथा दूसरी पहली के 30 दिन बाद की जाती है, यदि खरपतवार अधिक उगते है, तो बुवाई के बाद 1-2 दिन के अंदर 30 प्रतिशत पेंडीमेथलीन 3.3 लीटर को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए, जिससे कि खरपतवारो का जमाव ही न हो सकेI

रोग प्रबंधन

मेथी की फसल में कौन-कौन से रोग लगते है तथा उनका नियंत्रण कैसे करना चाहिए?
मेथी में उकठा रोग, डैपिंग आफ, पाउड्री मिल्ड्यू, लीफ स्पॉट, डाउनी मिल्ड्यू तथा कभी कभी ब्लाइट बीमारी भी लगती है, रोग नियंत्रण करने हेतु बीज शोधन करने के बाद ही बुवाई करनी चाहिएI मिल्ड्यू के नियंत्रण हेतु सल्फर पाउडर 5 प्रतिशत का 15 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर के हिसाब से डस्टिंग करनी चाहिए तथा डाउनी मिल्ड्यू हेतु 1 प्रतिशत बोर्डोमिक्सचर का छिड़काव करना चाहिएI

कीट प्रबंधन

मेथी की फसल में कौन-कौन कीट लगते है तथा उनका नियंत्रण कैसे करे?
मेथी में पत्ती का गिडार, पॉड बोरर तथा माहू कीट लगते है, इनका नियंत्रण 0.2 प्रतिशत कार्बेरिल या इकोलेक्स 0.05 प्रतिशत या मैलाथियान 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोलकर छिड़काव करना चाहिएI

फसल कटाई

मेथी की कटाई बीज तथा हरी सब्जी बनाने हेतु कब और कैसे करते है?
कभी-कभी केवल बीजोत्पादन हेतु ही फसल उगाई जाती है, ऐसी दशा में पत्तियो की कटाई नहीं की जाती है या केवल एक बार ही कटाई करते हैI जब फसल केवल पत्ती कटिंग के लिए उगाते है, उस दशा में 4-5 पत्ती कटिंग की जाती है, इसके बाद फसल खत्म कर देते हैI बीज हेतु: फसल जब मार्च में पककर खेत में ही सूख जाती है, तभी कटाई की जाती है और कटाई के बाद मड़ाई करके बीज अलग कर लिए जाते हैI

पैदावार

मेथी के बीजोउत्पादन तथा हरी सब्जी हेतु प्रति हैक्टेयर कितनी मेथी प्राप्त होती है?

फसल जब खाली पत्ती प्राप्त हेतु बुवाई की जाती है, तो 90 से 100 कुन्तल प्रति हैक्टेयर उपज होती है यदि फसल पत्ती और बीज दोनों के लिए उगते है, तो 2 से 3 पत्ती कटिंग से 15 से 20 कुन्तल पत्ती तथा बाद में 8- 10 कुन्तल बीज प्राप्त होता है, जब केवल बीज प्राप्त करने हेतु फसल उगाई जाती है, तो 12 से 15 कुन्तल बीजोत्पादन होता हैI

गेंदा की खेती

जलवायु और भूमि

गेंदे की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु और भूमि की आवश्यकता होती है?
उत्तर भारत में मैदानी क्षेत्रो में शरद ऋतू में उगाया जाता है तथा उत्तर भारत के पहाड़ी क्षेत्रो में गर्मियों में इसकी खेती की जाती हैI गेंदा की खेती बलुई दोमट भूमि उचित जल निकास वाली उत्तम मानी जाती है I जिस भूमि का पी.एच. मान 7.0 से 7.5 के बीच होता है वह भूमि खेती के लिए अच्छी मानी जाती हैI

प्रजातियाँ

गेंदे की खेती के लिए उन्नतशील प्रजातियां कौन-कौन सी है?
गेंदा की चार प्रकार की किस्मे पायी जाती है प्रथम अफ्रीकन गेंदा जैसे कि क्लाइमेक्स, कोलेरेट, क्राउन आफ गोल्ड, क्यूपीट येलो, फर्स्ट लेडी, फुल्की फ्रू फर्स्ट, जॉइंट सनसेट, इंडियन चीफ ग्लाइटर्स, जुबली, मन इन द मून, मैमोथ मम, रिवर साइड ब्यूटी, येलो सुप्रीम, स्पन गोल्ड आदि हैI ये सभी व्यापारिक स्तर पर कटे फूलो के लिए उगाई जाती हैI दूसरे प्रकार की मैक्सन गेंदा जैसे कि टेगेट्स ल्यूसीडा, टेगेट्स लेमोनी, टेगेट्स मैन्यूटा आदि है ये सभी प्रमुख प्रजातियां हैI तीसरे प्रकार की फ्रेंच गेंदा जैसे कि बोलेरो गोल्डी, गोल्डी स्ट्रिप्ट, गोल्डन ऑरेंज, गोल्डन जेम, रेड कोट, डेनटी मैरिएटा, रेड हेड, गोल्डन बाल आदि हैI इन प्रजातियों का पौधा फ़ैलाने वाला झड़ी नुमा होता हैI पौधे छोटे होते है देखने में अच्छे लगते हैI चौथे संकर किस्म की प्रजातिया जैसे की नगेटरेटा, सौफरेड, पूसा नारंगी गेंदा, पूसा बसन्ती गेंदा आदिI

खेत की तैयारी

गेंदे की खेती में खेत की तैयारी कैसे करे और उसमे पौध किस प्रकार डाले?
गेंदे के बीज को पहले पौधशाला में बोया जाता हैI पौधशाला में पर्याप्त गोबर की खाद डालकर भलीभांति जुताई करके तैयार की जाती हैI मिट्टी को भुरभुरा बनाकर रेत भी डालते है तथा तैयार खेत या पौधशाला में क्यारियां बना लेते हैI क्यारियां 15 सेंटीमीटर ऊंची एक मीटर चौड़ी तथा 5 से 6 मीटर लम्बी बना लेना चाहिएI इन तैयार क्यारियो में बीज बोकर सड़ी गोबर की खाद को छानकर बीज को क्यारियो में ऊपर से ढक देना चाहिएI तथा जब तक बीज जमाना शुरू न हो तब तक हजारे से सिंचाई करनी चाहिए इस तरह से पौधशाला में पौध तैयार करते हैI

बीज बुवाई

गेंदे की खेती में बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर कितनी लगती है और पौध डालने का उचित समय कौन सा है?
गेंदे की बीज की मात्रा किस्मों के आधार पर लगती हैI जैसे कि संकर किस्मों का बीज 700 से 800 ग्राम प्रति हेक्टेयर तथा सामान्य किस्मों का बीज 1.25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता हैI भारत वर्ष में इसकी बुवाई जलवायु की भिन्नता के अनुसार अलग-अलग समय पर होती हैI उत्तर भारत में दो समय पर बीज बोया जाता है जैसे कि पहली बार मार्च से जून तक तथा दूसरी बार अगस्त से सितम्बर तक बुवाई की जाती हैI

पौधरोपण

गेंदे की पौध की रोपाई किस विधि से करते है?
गेंदा के पौधों की रोपाई समतल क्यारियो में की जाती है रोपाई की दूरी उगाई जाने वाली किस्मों पर निर्भर करती हैI अफ्रीकन गेंदे के पौधों की रोपाई में 60 सेंटीमीटर लाइन से लाइन तथा 45 सेंटीमीटर पौधे से पौधे की दूरी रखते है तथा अन्य किस्मों की रोपाई में 40 सेंटीमीटर पौधे से पौधे तथा लाइन से लाइन की दूरी रखते हैI

पोषण प्रबंधन

गेंदे की खेती में खाद एवं उर्वरको का प्रयोग कब करना चाहिए और कितनी मात्रा में करना चाहिए?
250 से 300 कुंतल सड़ी गोबर की खाद खेत की तैयारी करते समय प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए इसके साथ ही अच्छी फसल के लिए 120 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस तथा 80 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर देना चाहिएI फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा तथा नत्रजन की आधी मात्रा खेत की तैयारी करते समय अच्छी तरह जुताई करके मिला देना चाहिएI नत्रजन की आधी मात्रा दो बार में बराबर मात्रा में देना चाहिएI पहली बार रोपाई के एक माह बाद तथा शेष रोपाई के दो माह बाद दूसरी बार देना चाहिएI

खरपतवार प्रबंधन

गेंदे की फसल में निराई और गुड़ाई करने का सही समय क्या है?
गेंदा के खेत को खरपतवारो से साफ़ सुथरा रखना चाहिए तथा निराई-गुड़ाई करते समय गेंदा के पौधों पर 10 से 12 सेंटीमीटर ऊंची मिट्टी चढ़ा देनी चाहिए जिससे कि पौधे फूल आने पर गिर न सकेI

रोग प्रबंधन

गेंदे की फसल में कौन-कौन से रोग लगने की सम्भावना होती है और उसके नियंत्रण हेतु हमें क्या उपाय करने चाहिए?
गेंदा में आर्ध पतन, खर्रा रोग, विषाणु रोग तथा मृदु गलन रोग लगते हैI आर्ध पतन हेतु नियंत्रण के लिए रैडोमिल 2.5 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम या केप्टान 3 ग्राम या थीरम 3 ग्राम से बीज को उपचारित करके बुवाई करनी चाहिएI खर्रा रोग के नियंत्रण के लिए किसी भी फफूंदी नाशक को 800 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिएI विषाणु एवं गलन रोग के नियंत्रण हेतु मिथायल ओ डिमेटान 2 मिलीलीटर या डाई मिथोएट एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिएI

कीट प्रबंधन

गेंदे की फसल में कौन-कौन से कीट लगते है और उनके नियंत्रण के लिए हमें क्या उपाय करने चाहिए?
गेंदा में कलिका भेदक, थ्रिप्स एवं पर्ण फुदका कीट लगते है इनके नियंत्रण हेतु फास्फोमिडान या डाइमेथोएट 0.05 प्रतिशत के घोल का छिड़काव 10 से 15 दिन के अंतराल पर दो-तीन छिड़काव करना चाहिए अथवा क़यूनालफॉस 0.07 प्रतिशत का छिड़काव आवश्यकतानुसार करना चाहिएI

फसल कटाई

गेंदे की फसल में तुड़ाई और कटाई कैसे करते है कब करते है?
जब हमारे खेत में गेंदा की फसल तैयार हो जाती है तो फूलो को हमेशा प्रातः काल ही काटना चाहिए तथा तेज धूप न पड़े फूलो को तेज चाकू से तिरछा काटना चाहिए फूलो को साफ़ पात्र या बर्तन में रखना चाहिएI फूलो की कटाई करने के बाद छायादार स्थान पर फैलाकर रखना चाहिएI पूरे खिले हुए फूलो की ही कटाई करानी चाहिएI कटे फूलो को अधिक समय तक रखने हेतु 8 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान पर तथा 80 प्रतिशत आद्रता पर तजा रखने हेतु रखना चाहिएI कट फ्लावर के रूप में इस्तेमाल करने वाले फूलो के पात्र में एक चम्मच चीनी मिला देने से अधिक समय तक रख सकते हैI

पैदावार

गेंदे की फसल से प्रति हेक्टेयर कितनी पैदावार या उपज प्राप्त हो सकती है?

गेंदे की उपज भूमि की उर्वरा शक्ति तथा फसल की देखभाल पर निर्भर करती है इसके साथ ही सभी तकनीकिया अपनाते हुए आमतौर पर उपज के रूप में 125 से 150 कुंतल प्रति हेक्टेयर फूल प्राप्त होते है कुछ उन्नतशील किस्मों से पुष्प उत्पादन 350 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होते है यह उपज पूरी फसल समाप्त होने तक प्राप्त होती हैI

हल्दी की खेती

परिचय

हल्दी मसाले वाली फसलो में बहुत ही महत्वपूर्ण है, इसकी खेती भारतवर्ष में सबसे अधिक की जाती हैI मुख्यरूप से इसकी खेती आँध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, केरल एवं कर्नाटक में अधिक की जाती हैI

जलवायु एवं भूमि

हल्दी की खेती के लिए जलवायु एवं भूमि किस प्रकार की होनी चाहिए?
हल्दी के लिए गर्म व तर जलवायु की आवश्यकता पड़ती है, यह बरसात की फसल है इसके लिए 20 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान उपयुक्त होता हैI हल्दी की खेती के लिए बलुई दोमट एवं मटियार दोमट भूमि उपयुक्त होती है, जिसमे जल निकास होना अति आवश्यक हैI इसकी खेती सामान्य पी.एच. वाली भूमि में अच्छी तरह से की जा सकती हैI

प्रजातियाँ

हल्दी की उन्नतशील प्रजातियां कौन-कौन सी होती है?
हल्दी की प्रजातियां पाई जाती है जैसे कि सी.ओ.1, कृषणा, रोमा, रंगा, रश्मि,स्वर्ण, सुदर्शन, सुगंधम, पंत पीतम, सुरोमा, बी. एस. आर1, प्रभा, प्रतिभा, कान्ती, राजेंद्र, सोनिया, शोभा, सुगना, आजाद हल्दी1 एवं सुवर्णा आदि प्रजातियां हैI

खेत की तैयारी

हल्दी की खेती हेतु खेत किस प्रकार से तैयार करे?
खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करते है तथा दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करके खेत को समतल करते हुए भुरभुरा बना लेते हैI इसके पश्चात 15 सेंटीमीटर ऊंची मेंडे बना लेना चाहिए मेंड़ो की चौड़ाई 1 से 1.2 मीटर रखते हैI दो मेंड़ो के बीच की दूरी 40 सेंटीमीटर रखते है जिससे पानी आदि निकालने में सुविधा रहेI मेंड़ो की लम्बाई सुविधानुसार रखते है इसके पश्चात नमी होने पर इन्ही मेंड़ो पर बुवाई की जाती हैI

बीज बुवाई

हल्दी की बुवाई में बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर कितनी लगती है तथा बीज शोधन किस प्रकार से हमे करना चाहिए?
बीज की मात्रा कंद के वजन के अनुसार घटती बढती है इसकी रोपाई हेतु 2500 किलोग्राम कंद की मात्रा प्रति हेक्टेयर रोपाई में लगती हैI कांडो का शोधन 0.25 प्रतिशत एगलाल के घोल से 30 मिनट घोल में डुबाकर रखना चाहिए इसके पश्चात निकालकर छाया में सुखाकर बुवाई बुवाई करनी चाहिएI
हल्दी की बुवाई किस समय करनी चाहिए तथा बुवाई में कौन सी विधियां अपनानी चाहिए?
खेत तैयारी के पश्चात बनाई गयी मेंड़ों पर सिंचाई करके नमी होने पर लाइन से लाइन की दूरी 30 से 40 सेंटीमीटर तथा कंद से कंद की दूरी 20 से 25 सेंटीमीटर रखते हुए 5 से 7 सेंटीमीटर की गहराई पाए बुवाई करनी चाहिएI बुवाई का सबसे उपयुक्त समय अप्रैल से मई तक होता हैI बुवाई के समय पर्याप्त नमी रहना अति आवश्यक हैI अप्रैल - मई में बुवाई करने पर वर्षा से नुकसान से बचाया जा सकता हैI
हल्दी की खेती में मल्चिंग कब और कैसे तथा किससे करनी चाहिए?
हल्दी की बुवाई के बाद फसल में नमी पर्याप्त रखने हेतु मल्चिंग की जाती है जिससे कि जमाव अच्छा हो सकेI मल्चिंग पौधों की हरी पत्तियो, पुवाल, भूसे एवं ढाक की पत्तियो से की जाती हैI मल्चिंग में लगभग 12500 से 15000 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हरी पत्तियो की मात्रा लगती हैI भली भांति जमाव हो जानी के बाद सभी मल्चिंग के सामान को हटा दिया जाता हैI

पोषण प्रबंधन

हल्दी की खेती में खाद एवं उर्वरको की मात्रा प्रति हेक्टेयर कितनी लगती है और इसका प्रयोग हमें कब करना चाहिए?
खेत की तैयारी करते समय 400 कुंतल सड़ी गोबर की खाद अच्छी तरह से खेत में मिला देना चाहिएI इसके साथ ही 60 किलोग्राम नत्रजन, 50 किलोग्राम फास्फोरस तथा 120 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में देते हैI फास्फोरस की आधी मात्रा तथा पोटाश की पूरी मात्रा बेसल ड्रेसिंग में खेत की तैयारी के समय देते है तथा नत्रजन की 1/2 मात्रा बुवाई के 45 दिन बाद तथा आधी मात्रा नत्रजन की 1/2 भाग फास्फोरस की मात्रा के साथ बुवाई के तीन माह बाद देना चाहिएI

जल प्रबंधन

हल्दी की में सिंचाई कब और कैसे करनी चाहिए?
हल्दी में वर्षा होने पर अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती हैI वर्षा के पानी के अलावा तीन चार सिचाइयो की आवश्कता पड़ती हैI जब फसल पक जावे अर्थात पत्तियां पीली होकर मुड़ने लगे तो सिंचाई रोक देनी चाहिएI

खरपतवार प्रबंधन

हल्दी की फसल में निराई-गुड़ाई तथा मिट्टी चढ़ाना कब और कैसे करना चाहिए?
हल्दी का अधिक उत्पादन प्राप्त करने हेतु समय-समय पर निराई-गुड़ाई करके खेत को साफ़ रखना चाहिएI तीन-चार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती हैI गुड़ाई करते समय पौधों पर दो बार मिटटी चढ़ानी चाहिए जिससे कंद अधिक से अधिक बन सकेI

रोग प्रबंधन

हल्दी में कौन-कौन से रोग लगते है तथा उनका नियंत्रण हमें कैसे करना चाहिए?
हल्दी में कंद विगलन रोग लगता है इसके साथ ही पर्ण चित्ती रोग भी लगता हैI इनकी रोकथाम हेतु रोग रहित प्रकंद बोने चाहिए तथा कंदो का शोधन करके बुवाई करनी चाहिएI खड़ी फसल में कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति लीटर पानी या कापर आक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर या मैंकोजेब 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिएI

कीट प्रबंधन

हल्दी में कौन-कौन से कीट लगते है तथा उनका नियंत्रण हमें कैसे करना चाहिए?
हल्दी के कंदो में प्रकंद बेधक कीट लगता है इसके प्रकोप से कंदो में गलन एवं सड़न पैदा हो जाती हैI इसको रोकने हेतु भूमि में बुवाई के समय मैलाथियान या क्लोरोपायरीफास का प्रयोग करना चाहिएI खड़ी फसल में मैलाथियान 50 ई.सी. को 250 मिलीलीटर प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए या कार्बराइल धूल को 200 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में घोलकर 10 से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिएI

फसल कटाई

हल्दी की फसल की खुदाई कब तथा कैसे करनी चाहिए ?
हल्दी की फसल 8-9 महीने में पककर तैयार होती हैI फसल की पत्तियाँ पीली होकर जमीन पर गिर पडती हैI जब जमीन अच्छी तरह से सूख जावे तभी खुदाई करानी चाहिएI

पैदावार

हल्दी की फसल की खुदाई के बाद पैदावार कितनी प्रति हेक्टेयर होती है?

पूर्णरूप से पकी हुई फसल की खुदाई करने पर 200 से 250 कुंतल कच्ची हल्दी की पैदावार प्राप्त होती हैI

गुलाब की खेती


परिचय

गुलाब की खेती बहुत पहले से पूरी दुनिया में की जाती हैI इसकी खेती पूरे भारतवर्ष में व्यवसायिक रूप से की जाती हैI गुलाब के फूल डाली सहित या कट फ्लावर तथा पंखुड़ी फ्लावर दोनों तरह के बाजार में व्यापारिक रूप से पाये जाते हैI गुलाब की खेती देश व् विदेश निर्यात करने के लिए दोनों ही रूप में बहुत महत्वपूर्ण हैI गुलाब को कट फ्लावर, गुलाब जल, गुलाब तेल, गुलकंद आदि के लिए उगाया जाता हैI गुलाब की खेती मुख्यतः कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्रा, बिहार, पश्चिम बंगाल ,गुजरात, हरियाणा, पंजाब, जम्मू एवं कश्मीर, मध्य प्रदेश, आंध्रा प्रदेश एवं उत्तर प्रदेश में अधिक की जाती हैI

जलवायु और भूमि

गुलाब की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु और भूमि की आवश्यकता होती है?
गुलाब की खेती उत्तर एवं दक्षिण भारत के मैदानी एवं पहाड़ी क्षेत्रों में जाड़े के दिनों में की जाती हैI दिन का तापमान 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेट तथा रात का तापमान 12 से 14 डिग्री सेंटीग्रेट उत्तम माना जाता हैI गुलाब की खेती हेतु दोमट मिट्टी तथा अधिक कार्बनिक पदार्थ वाली होनी चाहिएI जिसका पी.एच. मान 5.3 से 6.5 तक उपयुक्त माना जाता हैI

प्रजातियाँ

कौन-कौन सी उन्नतशील प्रजातियां है गुलाब की?
गुलाब की लगभग 6 प्रकार की प्रजातियां पाई जाती है प्रथम संकर प्रजातियां जिसमे कि क्रिमसन ग्लोरी, मिस्टर लिंकन, लवजान, अफकैनेडी, जवाहर, प्रसिडेंट, राधाकृषणन, फर्स्ट लव , पूजा, सोनिया, गंगा, टाटा सैंटानरी, आर्किड, सुपर स्टार, अमेरिकन हेरिटेज आदि हैI दूसरे प्रकार कि पॉलीएन्था इसमे अंजनी, रश्मी, नर्तकी, प्रीत एवं स्वाती आदिI तीसरे प्रकार कि फ़लोरीबण्डा जैसी कि बंजारन, देहली प्रिंसेज, डिम्पल, चन्द्रमा, सदाबहार, सोनोरा, नीलाम्बरी, करिश्मा सूर्यकिरण आदिI चौथे प्रकार कि गैंडीफलोरा इसमे क्वींस, मांटेजुमा आदिI पांचवे प्रकार कि मिनीपेचर ब्यूटी क्रिकेट, रेड फ्लस, पुसकला, बेबीगोल्ड स्टार, सिल्वर टिप्स आदि और अंत में छठवे प्रकार कि लता गुलाब इसमे काक्लेट, ब्लैक बॉय, लैंड मार्क, पिंक मेराडोन, मेरीकलनील आदि पाई जाती हैI

खेत की तैयारी

गुलाब की खेती करने के लिए लेआउट किस प्रकार से तैयार करते है और खेतो की तैयारी किस प्रकार करे?
सुंदरता की दृष्टि से औपचारिक लेआउट करके खेत को क्यारियो में बाँट लेते है क्यारियो की लम्बाई चौड़ाई 5 मीटर लम्बी 2 मीटर चौड़ी रखते हैI दो क्यारियो के बीच में आधा मीटर स्थान छोड़ना चाहिएI क्यारियो को अप्रैल मई में एक मीटर की गुड़ाई एक मीटर की गहराई तक खोदे और 15 से 20 दिन तक खुला छोड़ देना चाहिएI क्यारियो में 30 सेंटीमीटर तक सूखी पत्तियो को डालकर खोदी गयी मिट्टी से क्यारियो को बंद कर देना चाहिए साथ ही गोबर की सड़ी खाद एक महीने पहले क्यारी में डालना चाहिए इसके बाद क्यारियो को पानी से भर देना चाहिए साथ ही दीमक के बचाव के लिए फ़ालीडाल पाउडर या कार्बोफ्यूरान 3 जी. का प्रयोग करेI लगभग 10 से 15 दिन बाद ओठ आने पर इन्ही क्यारियो में कतार बनाते हुए पौधे व् लाइन से लाइन की दूरी 30 गुने 60 सेंटीमीटर राखी जाती हैI इस दूरी पर पौधे लगाने पर फूलो की डंडी लम्बी व् कटाई करने में आसानी रहती हैI

पौधशाला

गुलाब की खेती करने के लिए पौध तैयार किस तरह से करे?
जंगली गुलाब के ऊपर टी बडिंग द्वारा इसकी पौध तैयार होती हैI जंगली गुलाब की कलम जून-जुलाई में क्यारियो में लगभग 15 सेंटीमीटर की दूरी पर लगा दी जाती हैI नवम्बर से दिसंबर तक इन कलम में टहनियां निकल आती है इन पर से कांटे चाकू से अलग कर दिए जाते हैI जनवरी में अच्छे किस्म के गुलाब से टहनी लेकर टी आकार कालिका निकालकर कर जंगली गुलाब की ऊपर टी में लगाकर पालीथीन से कसकर बाँध देते हैI ज्यो-ज्यो तापमान बढता है तभी इनमे टहनी निकल आती हैI जुलाई अगस्त में रोपाई के लिए पौध तैयार हो जाती हैI

पौधरोपण

गुलाब की खेती में पौधों की रोपाई किस प्रकार करते है?
पौधशाला से सावधानीपूर्वक पौध खोदकर सितम्बर-अक्टूबर तक उत्तर भारत में पौध की रोपाई करनी चाहिएI रोपाई करते समय ध्यान दे कि पिंडी से घास फूस हटाकर भूमि की सतह से 15 सेंटीमीटर की ऊंचाई पर पौधों की रोपाई करनी चाहिएI पौध लगाने के बाद तुरंत सिंचाई कर देना चाहिएI

पोषण प्रबंधन

खाद और उर्वरको की आवश्यकता किस प्रकार पड़ती है गुलाब की खेती में ?
उत्तम कोटि के फूलो की पैदावार लेने के हेतु प्रूनिंग के बाद प्रति पौधा 10 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद मिट्टी में मिलाकर सिंचाई करनी चाहिएI खाद देने के एक सप्ताह बाद जब नई कोपल फूटने लगे तो 200 ग्राम नीम की खली 100 ग्राम हड्डी का चूरा तथा रासायनिक खाद का मिश्रण 50 ग्राम प्रति पौधा देना चाहिएI मिश्रण का अनुपात एक अनुपात दो अनुपात एक मतलब यूरिया, सुपर फास्फेट, पोटाश का होना चाहिएI

जल प्रबंधन

सिंचाई के लिए क्या तरीके अपनाये?
गुलाब के लिए सिंचाई का प्रबंधन उत्तम होना चाहिएI आवश्यकतानुसार गर्मी में 5 से 7 दिनों के बाद तथा सर्दी में 10 से 12 दिनों के बाद सिंचाई करते रहना चाहिएI

खरपतवार प्रबंधन

गुलाब के पौधों की कटाई छटाई यानी कि प्रूनिंग किस प्रकार करे?
उत्तर प्रदेश के मैदानी भागो में कटाई-छटाई हेतु अक्टूबर का दूसरा सप्ताह सर्वोत्तम होता है लेकिन उस समय वर्षा नहीं होनी चाहिएI पौधे में तीन से पांच मुख्य टहनियों को 30 से 40 सेंटीमीटर रखकर कटाई की जाती हैI यह ध्यान रखना चाहिए कि जहाँ आँख हो वहाँ से 5 सेंटीमीटर ऊपर से कटाई करनी चाहिएI कटे हुए भाग को कवकनाशी दवाओ से जैसे कि कापर आक्सीक्लोराइड, कार्बेन्डाजिम, ब्रोडोमिश्रण या चौबटिया पेस्ट का लेप लगना आवश्यक होता हैI

रोग प्रबंधन

गुलाब के फूलो में कौन-कौन से रोग लगने की सम्भावना रहती है और उसकी रोकथाम के लिए हमें क्या उपाय करने चाहिए?
गुलाब में पाउडरी मिल्ड्यू या खर्रा रोग, उलटा सूखा रोग लगते हैI खर्रा रोग को रोकने हेतु गंधक दो ग्राम प्रति लीटर पानी में या डायनोकॉप एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में या ट्राइकोडर्मा एक मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल पर दो छिड़काव दवा अदल-बदल कर करना चाहिएI सूखा रोग की रोकथाम हेतु 50 प्रतिशत कापर आक्सीक्लोराइड को 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए जिससे सूखा रोग न लग सकेI

कीट प्रबंधन

गुलाब की फसल में कौन-कौन से कीट लगते है?
गुलाब में माहू, दीमक एवं सल्क कीट लगते हैI माहू तथा सल्क कीट के दिखाई देने पर तुरंत डाई मिथोएट 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में या मोनोक्रोटोफास 1 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर 2 -3 छिड़काव करना चाहिएI दीमक के नियंत्रण हेतु सिंचाई करनी चाहिए तथा फोरेट 10 जी. 3 से 4 ग्राम या फ़ालीडाल 2% धुल 10 से 15 ग्राम प्रति पौधा गुड़ाई करके भूमि में अच्छी तरह मिला देना चाहिएI

फसल कटाई

गुलाब की खेती में जब फूल तैयार हो जाते है तब उनकी कटाई किस प्रकार करते है?
सफ़ेद, लाल, गुलाबी रंग के फूलो की अध् खुली पंखुड़ियों में जब ऊपर की पंखुड़ी नीचे की ओर मुड़ना शुरू हो जावे तब फूल काटना चाहिएI फूलो को काटते समय एक या दो पत्तियां टहनी पर छोड़ देना चाहिए जिससे पौधों की वहाँ से बढ़वार होने में कोइ परेशानी न हो सकेI फूलो की कटाई करते समय किसी बर्तन में पानी साथ में रखना चाहिए जिससे फूलो को काटकर पानी तुरंत रखा जा सकेI बर्तन में पानी कम से कम 10 सेंटीमीटर गहरा अवश्य होना चाहिए जिससे फूलो की डंडी पानी में डूबी रहे पानी में प्रिजर्वेटिव भी मिलाते हैI फूलो को कम से कम 3 घंटे पानी में रखने के बाद ग्रेडिंग के लिए निकालना चाहिएI यदि ग्रेडिंग देर से करनी हो तो फूलो को 1 से 3 डिग्रीसेंटीग्रेट तापक्रम पर कोल्ड स्टोरेज रखना चाहिए जिससे कि फूलो की गुणवत्ता अच्छी रह सकेI

पैदावार

गुलाब की खेती से फूलो की उपज प्रति हेक्टेयर कितनी मात्रा प्राप्त हो जाती है?

गुलाब की उपज भूमि की उर्वरा शक्ति फसल की देखरेख एवं प्रजातियों पर निर्भर करती हैI फिर भी आमतौर पर लगभग 200 से 250 कुंतल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती हैI यह उपज पूरे साल में कट फ्लावर से मिलती हैI

गन्ने की खेती

परिचय

हमारे देश में गन्ना प्रमुख रूप से नकदी फसल के रूप में उगाया जाता है, जिसकी खेती प्रति वर्ष लगभग 30 लाख हेक्टर भूमि में की जाती है, इस देश में औसत उपज 65.4 टन प्रति हेक्टर है, जो की काफी कम है, यहाँ पर मुख्य रूप से गन्ना द्वारा ही चीनी व गुड बनाया जाता है I

प्रजातियाँ

गन्ने की उन्नतशील प्रजातियाँ कौन-कौन सी उगाई जाती हैं ?
उत्तर प्रदेश में विभिन्न क्षेत्रो के लिए गन्ने की विभिन्न प्रजातियाँ स्वीकृत हैं,

शीघ्र पकने वाली :

कोयम्बटूर शाहजहांपुर  8436, 88230,
95255, 96268, 98231, 95436
एवं कोयम्बटूर सेलेक्शन-00235 तथा 01235 आदि हैं इसी तरह से

मध्य एवं देर से पकने वाली प्रजातियाँ:

कोयम्बटूर शाहजहांपुर 8432, 94257, 84212, 97264, 95422, 96275, 97261, 96269, 99259
एवं यू. पी. 0097 जिसे ह्रदय भी कहते हैं,
यू. पी.-22 कोयम्बटूर पन्त 84212 तथा कोयम्बटूर सेलेक्शन 95422, व 96436 आदि हैं, इसी तरह से

देर से बोई जाने वाली प्रजातियाँ:

कोयम्बटूर शाहजहांपुर 88230, 95255, यू पी-39 तथा कोयम्बटूर सेलेक्शन 92423 आदि हैंI

सीमित सिंचाई क्षेत्र हेतु:

कोयम्बटूर शाहजहांपुर 28216, 96275,
कोयम्बटूर सेलेक्शन 92423,एवं यू. पी.-39 आदि हैं

क्षारीय भूमि में पैदा करने हेतु:

कोयम्बटूर सेलेक्शन 92263 है

जल प्लावन क्षेत्र के लिए:

यू. पी. 9530 एवं कोयम्बटूर सेलेक्शन 96236 आदि हैं,
इसी प्रकार से

सीमित कृषि साधन क्षेत्र हेतु:

कोयम्बटूर सेलेक्शन 88216, 94275, 95255 आदि है,
लेकिन एक बहुत ही ध्यान देने योग्य बात है,
कोयम्बटूर सेलेक्शन-767 एक ऐसी प्रजाति है,
जो की लगभग सभी परिस्थितियों में उगाई जा सकती है

उपयुक्त जलवायु

गन्ने की खेती के लिए अनुकूल जलवायु और भूमि किस प्रकार की होनी चाहिए?
गन्ने की बुवाई के समय 30-35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान होना चाहिए, साथ ही वातावरण शुष्क होने पर बुवाई करनी चाहिए, गन्ना की खेती सभी प्रकार की भूमि में की जा सकती है, लेकिन दोमट भूमि सर्वोतम मानी जाती है, गन्ने के खेत में जल निकास की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए, यहाँ तक की गन्ने की खेती अच्छे जल निकास वाली चिकनी भूमि में भी की जा सकती हैI

खेत की तैयारी

फसल के लिए खेत की तैयारी किस प्रकार करें हमारे किसान भाई?
खेत को 2-3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करके भुरभुरा बना लेना चाहिए आखिरी जुताई में 200-250 कुंतल सड़ी गोबर की खाद खेत में मिलकर तैयार करना चाहिएI

बीज बुवाई

गन्ने की खेती के लिए गन्ने के बीज का चुनाव और मात्रा तथा गन्ने का शोधन हमे कैसे करना चाहिए?
शुद्ध रोग रहित व कीट मुक्त गन्ना अच्छे खेत से स्वस्थ बीज का चुनाव करें, गन्ने के 1/3 उपरी भाग का जमाव अच्छा होता है, गन्ने की मोटाई के अनुसार बीज की मात्रा कम ज्यादा होती है, 50-60 कुंतल लगभग 37500, तीन आंख वाले टुकड़े पैंडे, जिसे कहते हैं प्रति हेक्टर लगते हैं, अधिक देर से बुवाई करने पर डेढ़ गुना बीज की आवश्यकता पड़ती है, दो आँख वाले पैंडे 56000 प्रति हेक्टर लगते हैं, पारायुक्त रसायन जैसे ऐरीटान 6% या ऐगलाल 3% कॉपर सल्फेट कहतें हैं, कि क्रमशः 250 ग्राम या 560 ग्राम अथवा बाविस्टीन कि 112 ग्राम मात्र प्रति हैक्टर कि दर से 112 लीटर पानी में घोल बनाकर गन्ने के टुकड़ों या पैंडे को उपचारित करना चाहिए I
अब हमारे किसान भाईयों को ये बताइये कि गन्ने की बुवाई के लिए कौन सी विधि का प्रयोग करें?
गन्ने की बुवाई हल के पीछे लाइनों में करनी चाहिए, लाइन से लाइन की दूरी बुवाई में मौसम एवं समय के आधार पर अलग-अलग रखी जाती है, शरद एवं बसंत की बुवाई में 90 सेंटीमीटर तथा देर से बुवाई करने पर 60 सेंटीमीटर लाइन से लाइन की दूरी रखी जाती है, तथा पैंडे से पैंडे की दूरी 20 सेंटीमीटर दो आंख वाले गन्ने की रखी जाती है

जल प्रबंधन

गन्ने की फसल की सिंचाई कब और किस समय करनी चाहिए, और कितनी मात्रा में करनी चाहिए?
सिंचाई, बुवाई एवं क्षेत्र के अनुसार अलग-अलग समय एवं तरीके से की जाती है, प्रदेश के पूर्वी क्षेत्र में 4-5, मध्य क्षेत्र में 5-6, तथा पश्चिमी क्षेत्र में 7-8, सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है, इसके साथ ही दो सिंचाई वर्षा के बाद करना लाभप्रद पाया गया है

•    पोषण प्रबंधन

गन्ने की फसल में खाद एवं उर्वरक कितनी,कब, और कैसे प्रयोग में लायी जा सकती है?
गन्ने की अच्छी उपज पाने हेतु गोबर की खाद का प्रयोग खेत तैयारी करते समय प्रयोग करतें हैं, इसके साथ-साथ 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस, एवं 40 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टर प्रयोग करतें हैं, इसके साथ ही 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टर प्रयोग करना चाहिए, नाइट्रोजन कि 1/3 भाग मात्रा तथा फास्फोरस एवं पोटाश कि पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व कुंडो में डालते हैं, जिंक सल्फेट कि पूरी मात्रा खेत तैयार करते समय या पहली सिंचाई के बाद ओट आने पर पौधों के पास देकर गुडाई करनी चाहिए, शेष नाइट्रोजन कि मात्रा अप्रैल मई के माह में दो बार में समान हिस्सों में बाट कर प्रयोग करना चाहिएI

खरपतवार प्रबंधन

गन्ने की फसल में निराई एवं गुड़ाई और खरपतवार का नियंत्रण हमारे किसान भाई किस प्रकार करें?
गन्ने के पौधों की जड़ों को नमी व वायु उपलब्ध करने हेतु तथा खरपतवार नियंत्रण को ध्यान में रखते हुए ग्रीष्म काल में प्रत्येक सिंचाई के बाद गुड़ाई फावड़ा, कस्सी या कल्टीवेटर से करना लाभदायक होता है, इसके साथ-साथ खरपतवार नियंत्रण हेतु बुवाई के तुरंत बाद या एक या दो दिन बाद पैंडेमेथीलीन 30 ईसी की 3.3 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टर की दर से 700-800 लीटर  पानी में घोल कर छिडकाव करना चाहिए जिससे कि खरपतवार गन्ने के खेत में उग ही ना सकें I
गन्ने की फसल को गिरने से बचाने हेतु मिटटी कब और कैसे चढाई जाती है?
गन्ने के पौधों या थान की जगह जड़ पर जून माह के अंत में हल्की मिटटी चढ़ानी चाहिए, इसके बाद जब फसल थोड़ी और बढवार कर चुके तब जुलाई के अंत में दुबारा पर्याप्त मिटटी और चढ़ा देना चाहिए, जिससे की वर्षा होने पर फसल गिर ना सके I

रोग प्रबंधन

गन्ने की फसल में कौन कौन से रोग लगने की संभावना होती है, और उनकी रोकथाम एवं नियंत्रण के लिए क्या उपाय करे?
गन्ने की खेती वानस्पतिक सवर्धन द्वारा या प्रोपोगेटेड मेथड द्वारा की जाती है, जिसमे अधिकांश रोग बीज गन्ने द्वारा फैलतें हैं, गन्ने की विभिन्न प्रजातियों में लगने वाले प्रमुख रोग जो की  निम्न है, काना रोग, कन्डुआ रोग, उकठा रोग, अगोले का सडन रोग, पर्णदाह रोग, पत्ती की लाल धरी, वर्णन रोग आदि हैं, इनकी रोकथाम के लिए निम्न उपाए करने चाहिए-  
o    सबसे पहले तो रोग रोधी प्रजातियों की
बुवाई करनी चाहिए,
o    बीज गन्ने का चुनाव स्वस्थ एवं रोग रहित प्लांटों
के टुकड़ों से बुवाई करनी चाहिए
o    रोगी पौधों या गन्ने को पूरा पूरा
उखाड़ कर अलग कर देना चाहिए
जिससे संक्रमण दुबारा न हो सके
o    पेंडी रख कर फसल उत्पादन नहीं लेना चाहिए,
फसल चक्र अपनाने चाहिए तथा रोग ग्रसित
खेत को दुबारा कम से कम
साल तक गन्ना नहीं बोना चाहिए,
o    जल निकाश की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए
जिससे की वर्षा का पानी खेत में न रुक सके
क्योंकि इससे रोग फैलतें हैं,
o    रोग से प्रभावित खेत में कटाई के बाद पत्तियों एवं
ठूंठों को जला कर
नष्ट कर  देना चाहिए,
o    गन्ने की कटाई एवं सफाई के बाद गहरी जुताई
करनी चाहिए,
o    गन्ने के बीज को गर्म पानी में शोधित
करके बोना चाहिए,
o    गन्ने के बीज को रसायनों से उपचारित
करके बोना चाहिएI

  कीट प्रबंधन

   गन्ने की फसल में कौन-कौन से कीट नुकसान पहुंचातें हैं, और उनका नियंत्रण हमारे किसान भाई किस प्रकार करें?
 गन्ने की फसल में कीट बुवाई से कटाई तक फसल को किसी भी अवस्था में नुकसान पहुंचाते हैं, जैसे की दीमक पेड़ो के कटे सिरों में, आँखों, किल्लों की जड़ से तथा गन्ने के भी जड़ से काट देता है तथा कटे स्थान पर भर देता है, इसके अलावा और भी कीट लागतें हैं जो कि निम्न हैं, जैसे अंकुर बेधक, चोटी बेधक, तना बेधक, गुरदासपुर बेधक, कला चिकटा, पैरिल्ला, शल कीट, ग्रास हापर, आदि हैं इन कीटो की रोकथाम के लिए गन्ने के बीज के टुकड़ों को शोधित करके बुवाई करनी चाहिए, सिंचाई कि समुचित व्यवस्था करनी चाहिए जिससे दीमक आदि कम लगते रहें, मार्च से मई तक अंडा समूह को एकत्रित कर नष्ट कर देना चाहिए, सूखी पत्तियों को गन्ने से निकाल कर जल देना चाहिए,  मध्य अगस्त से मध्य सितम्बर तक 15 दिन के अंतराल पर मोनोक्रोटोफास 2.1 लीटर प्रति हैक्टर की दर से 1250 ली० पानी में घोल बनाकर छिडकाव करना चाहिए, इसके अलावा क्लोरोफास 20 ईसी 1 लीटर अथवा रोगोर 30% 0.825 लीटर प्रति हेक्टर की दर से प्रयोग करना चाहिए, कटाई के बाद सूखी पत्तियों को बिछाकर जला देना चाहिए, जिससे कीटों के अंडे नष्ट हो जाएँI

    फसल कटाई

   गन्ने की फसल की कटाई कब और कैसे करतें हैं?
    फसल की आयु ,परिपक्वता, प्रजाति तथा बुवाई के समय के आधार पर नवम्बर से अप्रैल तक कटाई की जाती है, कटाई के पश्चात गन्ना को सीधे शुगर फेक्ट्री में भेज देना चाहिए, काफी समय रखने पर गन्ने का वजन घटने लगता है, तथा शुगर या सकर प्रतिशत कम हो जाता है यदि शुगर फेक्ट्री नहीं भेज जा सके तो उतने ही गन्ने की कटाई करनी चाहिए जिसका गुड़ बनाया जा सके ज्यादा कटाई पर नुकसान होता हैI

   
पैदावार

    गन्ने की फसल से हमें कितनी उपज प्राप्त हो जाती है?

   गन्ने की उपज प्रजातियों के आधार पर अलग अलग पायी जाती है, शीघ्र पकने वाली प्रजातियाँ 80-90 टन प्रति हेक्टर उपज प्राप्त होती है,  मध्य एवं देर से पकने वालीं प्रजातियाँ में 90-100 टन प्रति हेक्टर उपज प्राप्त होती है, जल प्लावित क्षेत्रों में पकने वाली प्रजातियाँ 80-90 टन प्रति हेक्टर उपज देती हैं I 

ग्लेडियोलस की खेती

जलवायु और भूमि

ग्लेडियोलस की खेती के लिए किस प्रकार की ज
लवायु एवं भूमि की आवश्यकता होती है?
ग्लेडियोलस की खेती हेतु कम से कम तापक्रम 16 डिग्री सेंटीग्रेट तथा अधिक तापक्रम 23 से 40 डिग्री सेंटीग्रेट उपयुक्त होता है इसमे फूल आने पर बरसात नहीं होनी चाहिए ग्लेडियोलस की खेती सभी प्रकार की भूमि की जा सकती है जहाँ पर पानी का निकास अच्छा होता है लेकिन बलुई दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती हैI

प्रजातियाँ

ग्लेडियोलस की उन्नतशील प्रजातिया कौन-कौन सी है?
ग्लेडियोलस की लगभग दस हजार किस्मे है लेकिन कुछ मुख्य प्रजातियों की खेती उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्रो में होती है जैसे कि स्नो क्वीन, सिल्विया, एपिस ब्लासम, बिग्स ग्लोरी, टेबलर, जैक्सन लिले, गोल्ड बिस्मिल, रोज स्पाइटर, कोशकार, लिंकन डे, पैट्रीसिया, जार्ज मैसूर, पेंटर पियर्स, किंग कीपर्स, किलोमिंगो, क्वीन, अग्नि, रेखा, पूसा सुहागिन, नजराना, आरती, अप्सरा, सोभा, सपना एवं पूनम आदि हैI

खेत की तैयारी

ग्लेडियोलस की खेती के लिए खेत किस तरह से तैयार करना है?
खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करके दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से करने के बाद पाटा लगाकर खेत को समतल एवं भुरभुरा बना लेना चाहिएI आख़िरी जुताई में 500 कुंतल सड़ी गोबर की खाद मिला देना चाहिए तथा पानी के निकास का उचित प्रबंध करना चाहिएI

बीज बुवाई

ग्लेडियोलस की प्रति हेक्टेयर बुवाई एवं कन्दो की रोपाई में कितनी मात्रा लगती है तथा शोधन हमें किस प्रकार से करना चाहिए?
एक हेक्टेयर भूमि कन्दो की रोपाई हेतु लगभग दो लाख कन्दो की आवश्यकता पड़ती है यह मात्रा कन्दो की रोपाई की दूरी पर घट बढ़ सकती हैI कन्दो का शोधन बैविस्टीन के 0.02 प्रतिशत के घोल में आधा घंटा डुबोकर छाया में सुखाकर बुवाई या रोपाई करनी चाहिएI

पौधरोपण

ग्लेडियोलस के कन्दो की रोपाई का समय क्या होना चाहिए और किस विधि से रोपाई करनी चाहिए?
कन्दो की रोपाई का उत्तम समय उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रो सितम्बर से अक्टूबर तक होता हैI कन्दो की रोपाई लाइनो में करनी चाहिएI शोधित कन्दो को लाइन से लाइन एवं पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर अर्थात 20 गुने 20 सेंटीमीटर की दूरी पर 5 सेंटीमीटर की गहराई पर रोपाई करनी चाहिएI लाइनो में रोपाई से निराई-गुड़ाई में आसानी रहती है और नुकसान भी कम होता हैI

पोषण प्रबंधन

ग्लेडियोलस की खेती के लिए कितनी मात्रा में खाद एवं उर्वरको का प्रयोग करना चाहिए तथा कब-कब करना चाहिए?
खेत तैयार करते समय 500 कुंतल सड़ी गोबर की खाद आख़िरी जुताई में मिला देना चाहिएI इसके साथ ही पोषक तत्वों की अधिक आवश्यकता होने के कारण 200 किलोग्राम नत्रजन, 400 किलोग्राम फास्फोरस तथा 200 किलोग्राम पोटाश तत्व के रूप में प्रति हेक्टेयर देना चाहिएI नत्रजन की आधी मात्रा, फास्फोरस व् पोटाश की पूरी मात्रा खेत की तैयारी के समय बेसल ड्रेसिँग के रूप में देना चाहिए शेष नत्रजन की आधी मात्रा कन्दो की रोपाई एक माह बाद टॉप ड्रेसिंग के रूप में देना चाहिएI

जल प्रबंधन

ग्लेडियोलस की खेती की सिंचाई कब करनी चाहिए?
सिंचाई रोपाई के 10 से 15 दिन बाद जब कांड अंकुरित होने लगे तब पहली सिंचाई करनी चाहिएI फसल में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए तथा पानी सिंचाई का भरा भी नहीं रहना चाहिएI अन्य सिंचाई मौसम के अनुसार आवश्यकतानुसार करनी चाहिए जब फसल खुदने से पहले पीली पद जाये तब सिंचाई नहीं करनी चाहिएI

खरपतवार प्रबंधन

ग्लेडियोलस की खेती करते समय निराई-गुड़ाई किस विधि से करनी चाहिए?
कुल 4 -5 निराई-गुड़ाई की आवश्यकता पड़ती हैI दो बार मिट्टी पौधों पर चढ़ानी चाहिये उसी समय नाइट्रोजन का प्रयोग टॉप ड्रेसिंग के रूप में करना चाहिएI तीन पत्ती की स्टेज पर पहली बार व् छः पत्ती की स्टेज पर दूसरी बार मिट्टी चढ़ानी चाहिएI

रोग प्रबंधन

ग्लेडियोलस की खेती में कौन-कौन से रोग लगते है और उनकी रोकथाम किस तरह से कर सकते है?
इसमे झुलसा रोग, कंद सडन एवं पत्तियों के सूखने की बीमारी लगती हैI इनके नियंत्रण हेतु 0. 05 प्रतिशत को ओरियोफैंजिम का घोल बनाकर या 0. 2 प्रतिशत का बैविस्टीन अथवा वेलनेट का घोल बनाकर 10 से 12 दिन के अंतराल पर छिड़काव करना चाहिएI

कीट प्रबंधन

ग्लेडियोलस की खेती में लगाने वाले कीटो के बारे में बताये और उनकी रोकथाम हम किस तरह कर सकते है?
इसमे माहू एवं लाल सूंडी कीट लगते है इनकी रोकथाम के लिए रोगार 30 ई.सी. को 250 मिलीलीटर दवा 250 लीटर अर्थात 1 मिलीलीटर दवा 1 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिएI

फसल कटाई

ग्लेडियोलस की खेती में फूलो एवं कंदो की कटाई किस समय तथा किस विधि से करनी चाहिए?
फूलो या स्पाइको की कटाई सुबह के समय करनी चाहिएI कटाई के बाद डंडियों को बाल्टी में भरे पानी में रखना चाहिएI यदि पुष्प दूर भेजना हो तो डंडी की नीचे की कली में जैसे ही रंग दिखाई देना शुरू हो जाये तो काट लेना चाहिए तथा सौ-सौ के गुच्छों में बांधकर बाजार में भेजना चाहिएI यदि जल्दी प्रयोग में लाना हो तो तीन-चार पुष्प अवश्य पूर्ण विकसित होना चाहिएI कंदो की खुदाई करने के पश्चात 10 से 15 दिन छायादार कमरे में सुखाना चाहिए इसके बाद कंदो को लकड़ी की हवादार पेटियो में या पतले बोरे में भरना चाहिए जिनमे हवा जा सके इससे सड़ने का दर नहीं रहता हैI

पैदावार

ग्लेडियोलस की खेती में उपज प्रति हेक्टेयर कितनी प्राप्त होती है?

पौधों की दूरी के अनुसार एक लाख से एक लाख पच्चीस हजार पुष्प डांडिया प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है I

बरसीम की खेती

परिचय

बरसीम की खेती का क्या उपयोग है?
बरसीम हरे चारों में अपने गुणो द्वारा दुधारू पशुओ के लिए प्रसिद्ध हैI उत्तरी एवं पूर्वी क्षेत्रों में मक्का या धान के बाद रबी की फसल में बरसीम की खेती की जाती है बरसीम की खेती हरे चारे हेतु लगभग पूरे भारतवर्ष में की जाती हैI

जलवायु और भूमि

बरसीम की खेती के लिए किस प्रकार की जलवायु एवं भूमि होनी चाहिए?
बरसीम को रबी की फसलों के साथ उगते है इसके लिए गर्मी की आवश्यकता नहीं होती है इसलिए शरद ऋतु में ही इसकी खेती पूरे उत्तर प्रदेश में की जाती हैI बरसीम की खेती के लिए दोमट तथा भारी दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है इसकी खेती के लिए अम्लीय भूमि उपयुक्त नहीं होती हैI


प्रजातियाँ

बरसीम की उन्नतशील प्रजातियां कौन-कौन सी है?
बरसीम की मुख्य प्रजातियां इस प्रकार से है जैसे कि बरदान, मैस्कावी, बुंदेलखंड बरसीम जिसे जे.एच.पी.146 भी कहते है जे.एच.टी.वी.146, वी.एल.10, वी.एल. 2, वी.एल. 1, वी.एल. 22 एवं यु.पी.वी.110 तथा यु.पी.वी.103 हैI

खेत की तैयारी

खेतों की तैयारी किस प्रकार से करे?
खरीफ की फसल के बाद बरसीम की खेती हेतु पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद दो-तीन जुताई कल्टीवेटर या देशी हल से जुताई करके खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिएI बुवाई के लिए खेत को 4 मीटर गुणे 5 मीटर की क्यारियों में बाँट लेना चाहिएI

बीज बुवाई

बरसीम की खेती में बीज की मात्रा प्रति हेक्टेयर कितनी लगती है और बीजो का शोधन किस प्रकार से करे?
बरसीम का बीज 25 से 30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर लगता हैI चारा की उपज अधिक प्राप्त करने हेतु साथ में मिलाकर टाइप9 सरसो चारे वाली का बीज एक किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बोते हैI बरसीम में प्रायः कसनी का बीज मिला रहता है इसको निकालने हेतु 5 से 10 प्रतिशत नमक के घोल में मिश्रित बीज डाल देने से कसनी के बीज ऊपर आ जाते है उन्हें छनकर अलग कर लेना चाहिएI नमक के घोल से बीज को तुरंत निकालकर अलग कर लेना चाहिए जब बरसीम खेत में पहली बार बोई जा रही हो तो 10 किलोग्राम बीज को 200 ग्राम बरसीम कल्चर की दर से उपचारित कर लेना चाहिएI कल्चर न मिलाने पर बीज के बराबर मात्रा में पहले बोये गए कहते की मिट्टी मिला लेते हैI मृदा उपचार हेतु ट्राइकोडर्मा 5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से प्रयोग करे तथा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीजोपचार भी करना चाहिएI
बीजो की बुवाई का सही समय क्या है और इसे किस विधि से बोया जाता है?
बरसीम की बुवाई 15 अक्टूबर से 15 नवम्बर तक करना ठीक रहता है देर से बोने पर कटाई की संख्या कम तथा उपज भी कम प्राप्त होती हैI खेत की 4 गुने 5 की तैयार क्यारियो में 5 सेंटीमीटर गहरा पानी भरकर उसके ऊपर शोधित बीज छिड़ककर बुवाई करते है बुवाई के 24 घंटे बाद पानी क्यारियो से निकाल देना चाहिएI जहाँ धान कटाने के बाद बरसीम की बुवाई की जाती है वहाँ पर यदि धान कटने में यदि देर हो तो धान कटने से पहले 10 से 15 दिन पूर्व भी बरसीम को धान की खड़ी फसल में छिड़काव विधि से बुवाई करते हैI

पोषण प्रबंधन

उर्वरको का प्रयोग कब करना चाहिए और कितनी मात्रा में करना चाहिए?
बरसीम में नत्रजन की मात्रा की आवश्यकता कम पड़ती हैI बरसीम हेतु 20 किलोग्राम नत्रजन, 80 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हेक्टेयर की दर से बोते समय खेत में छिड़ककर मिट्टी में अच्छी तरह मिला देनी चाहिए इसके बाद क्यारी बनाकर पानी भरना चाहिए तथा बुवाई के बाद करते हैI

जल प्रबंधन

बरसीम में सिंचाई प्रबंधन की क्या व्यवस्था होती है इस बारे में बताइये?
बरसीम में पहली सिंचाई बीज अंकुरित होने के तुरंत बाद करनी चाहिए बाद में प्रतेक सप्ताह के अंतर पर दो-तीन सिंचाई करनी चाहिए इसके बाद अंत तक 20 दिन के अंतराल पर सिंचाई करे तथा मार्च से मई तक 10 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिएI

खरपतवार प्रबंधन

बरसीम की खेती में खरपतवारों का नियंत्रण कब करना चाहिए कैसे करना चाहिए?
बरसीम में निराई गुड़ाई की आवश्यकता कम पड़ती है तथा खरपतवार के साथ-साथ कासनी जमती है तो उसे खरपतवार के साथ ही उखाड़कर अलग कर देना चाहिएI खरपतवार एवं कासनी उखाड़ने के बाद पानी लगाना चाहिएI

फसल कटाई

बरसीम की कटाई हरे चारे हेतु कब और कितनी मात्रा में करनी चाहिए?
बरसीम में कुल चार-पांच कटाईया करते हैI बरसीम का फोलियेज जिसे हम हरा तना कहते है 6 से 8 सेंटीमीटर के ऊपर से कटना चाहिएI पहली कटाई बोने के 45 दिन बाद करनी चाहिए इसके बाद कटाई दिसम्बर एवं जनवरी में 30 से 35 दिन बाद करते है तथा फरवरी में 20 से 25 दिन बाद कटाई करते है इस प्रकार कुल 4 से 5 कटाई केवल चारा प्राप्त करने हेतु की जाती हैI

पैदावार

बरसीम से हरे चारे का उत्पादन और बीज उत्पादन प्रति हेक्टेयर कितनी मात्रा में प्राप्त हो जाता है?
इसमे दो तरह से उपज प्राप्त होती है एक तो हरा चारा दूसरा बीज उत्पादन परिस्थिति के आधार पर प्राप्त होता हैI हरा चारा बिना बीज उत्पादन के 800 से 1000 कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता हैI बीजोत्पादन पर हरा चारा 400 से 500 कुंतल प्रति हेक्टेयर एवं बीज दो से तीन कुंतल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता हैI

बीजोत्पादन

बरसीम का बीजोत्पादन किस प्रकार करते है?

बरसीम की दो-तीन कटाई के बाद कटाई बंद कर दी जाती हैI फरवरी का अंतिम या मार्च का प्रथम सप्ताह उपयुक्त होता हैI अंतिम कटाई के 10-15 दिन तक कटाई रोक देना चाहिएI अधिक कटाई करने पर बीज की उपज कम एवं बीज कमजोर प्राप्त होता हैI

कपास की खेती

परिचय

कपास एक महत्वपूर्ण नकदी फसल हैI व्यावसायिक रूप से यह स्वेत स्वर्ण के नाम से जानी जाती हैI देश में व्यापक स्तर पर कपास उत्पादन की आवश्यकता है, बिनौलो की खली व् तेल का व्यापक उपयोग है, प्रदेश को लगभग पांच लाख रूई की गांठो प्रतिवर्ष आवश्यकता पड़ती है आधुनिक तकनीकी अपनाकर अधिक से अधिक उपज प्राप्त की जा सकती हैI

प्रजातियाँ

कपास की खेती के बारे में उन उन्नतशील प्रजातियों के बारे में हमारे किसान भईयो को बताईये जिसका इस्तेमाल खेती करते वक्त करे?
कपास की खेती के लिए दो प्रकार की प्रजातियाँ पाई जाती है देशी प्रजातियाँ जैसे की लोहित, आर. जी. 8 एवम सी. ए. डी. 4 हैI दूसरे प्रकार की अमेरिकन प्रजातियाँ है जिसमे की एच. एस. 6 , विकाश, एच 777 ,एफ 846 , आर. एस. 810 एवम आर. एस. 2013 पाई जाती हैI

उपयुक्त भूमि

कपास की खेती के लिए किस प्रकार के जलवायु एवम भूमि उपयुक्त होनी चाहिए?
उत्तम जमाव हेतु न्यूनतम १६ डिग्री सेंटीग्रेट तापमान, फसल बढ़वार के समय २१ से २७ डिग्री सेंटीग्रेट तापमान एवम उपयुक्त फसल हेतु २७ से ३२ डिग्री सेंटीग्रेट तापमान की अलग- अलग आवश्यकता पड़ती है, गूलरो के पकते समय चमकीली धूप व् पाला रहित ऋतू  की आवश्यकता होती हैI सभी भूमियो में सफलतापूर्वक  खेती की जा सकती है लेकिन बलुई, क्षारीय, कंकड़युक्त एवम जल भराव वाली भूमि में कपास की खेती के लिए उनुपयुक्त है दोमट भूमि सर्वोत्तम होती है I   

खेत की तैयारी

कपास की फसल के किस प्रकार से आपने खेतो को तैयार करे?
खेत को पलेवा करके पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से 20 से 25 सेंटीमीटर गहरी जुताई करनी चाहिए यदि आवश्कता पड़े तो दुबारा पलेवा करके ओठ आने पर देशी हल या कल्टीवेटर से तीन चार जुताई करके खेत को अच्छी तरह भुरभुरा बनाकर खेत को समतल करने के बाद ही बुवाई करनी चाहिएI 

बीज बुवाई

कपास की बुवाई में बीज की मात्रा प्रति हैक्टर कितनी लगती है तथा बीजो का शोधन हमारे किसान भी किस प्रकार करे?
कपास में प्रजातियों के आधार पर बीजदर अलग अलग मात्रा में डाली जाती है
(अ) देशी प्रजातियों में 15 किग्रा प्रति हैक्टर (रेशा रहित )मात्रा पड़ती है

(ब) अमेरिकन प्रजातियों में 20 किग्रा प्रति हैक्टर (रेशा रहित )मात्रा पड़ती है
बीज शोधन हेतु जब बीज का रेशा अलग करने के लिए सान्द्र गंधक अम्ल रसायन द्वारा हटाकर के बीजो को साफ पानी में अच्छी धुलाई कारने के बाद अच्छी तरह छाया में सुखाने के बाद बीज शोधन किया जाता है छाया में सूखे हुए बीज को कार्बेन्डाजिम या कार्बाक्सी फफूंदी नाशक को2.5 ग्राम प्रति किग्रा की दर से लगाकर बीज शोधित किया जा सकता हैI
कपास की खेती में कौन सा समय अच्छा रहता है बुवाई के लिए और किस विधि से बुवाई करनी चाहिए?
 कपास की बुवाई का समय प्रजातियो के आधार पर अलग अलग होता हैI  देशी प्रजातियो की बुवाई अप्रैल के प्रथम पखवारे से दुसरे पखवारे तक की जाती हैI अमेरिकन प्रजातियों की बुवाई मध्य अप्रैल से मई के प्रथम सप्ताह तक की जाती हैI
बुवाई सामान्यता हल के पीछे कुडों में की जाती है कूडो में बुवाई करने पर लाइन से लाइन की दूरी 70 सेमी० तथा पौधे से पौधे की दूरी 30 सेमी० रखी जाती है बुवाई में एक स्थान पर केवल 4 से 5 बीज ही प्रयोग करेंI

पोषण प्रबंधन

कपास की फसल में खाद एवं उर्वरको का प्रयोग कैसे करे और कितनी मात्रा में करे?
खाद एवं उर्वरको का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर करनी चाहिए यदि मृदा में कर्वानिक पदार्थो की कमी हो तो खेत तैयारी के समय आखिरी जुताई में कुछ मात्रा गोबर की खाद सड़ी खाद में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए इसके साथ साथ 60 किलो ग्राम नाइट्रोजन तथा 30 किलो ग्राम फास्फोरस तत्व के रूप में प्रयोग करना चाहिए तथा पोटाश की संस्तुत नहीं की गई है नाइट्रोजन की आधी मात्रा तथा फास्फोरस की पूरी मात्रा का प्रयोग खेत तैयारी के समय आखिरी जुताई पर करना चाहिए शेष नाइट्रोजन की मात्र का प्रयोग फूल प्रारम्भ होने पर व आधिक फूल आने पर जुलाई माह में दो बार में प्रयोग करना चाहिएI

खरपतवार प्रबंधन

कपास की फसल में निराई गुड़ाई कब करे हमारे किसान भी और खरपतवारो पर किस प्रकार  नियंत्रण करे?
पहली सूखी निराई गुड़ाई पहली सिचाई अर्थात 30 से 35 दिन से पहले करनी चाहिए इसके पश्चात फसल बढ़वार के समय कल्टीवेटर द्वारा तीन चार बार आड़े बेड़े गुड़ाई करनी चाहिए फूल व गूलर बनने पर कल्टीवेटर से गुड़ाई नहीं करनी चाहिए इन अवस्थाओ में खुर्पी द्वारा खरपतवार गुड़ाई करते हुए निकलना चाहिए जिससे की फूलो व गुलारो को गिरने से बचाया जा सकेI
कपास की छटाई (प्रुनिग) कब और कैसे करनी चाहिए?
अत्यधिक व असामयिक वर्षा के कारण सामान्यता पौधों की ऊंचाई 1.5 मीटर से अधिक हो जाती है जिससे उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तो 1.5 मीटर से अधिक ऊंचाई वाले पौधों की ऊपर वाली सभी शाखाओ की छटाई, सिकेटियर या  (कैची) के द्वारा कर देना चाहिए इस छटाई से कीटनाशको के छिडकाव में आसानी रहती हैI

रोग प्रबंधन

कपास की फसल में कौन कौन से रोग लगते है और उनका नियंत्रण हम किस प्रकार करे ?
कपास में शाकाणु झुलसा रोग (बैक्टीरियल ब्लाइट) तथा फफूंदी जनित रोग लगते है, इनके बचाव के लिए खड़ी फसल में वर्षा प्रारम्भ होने पर 1.25 ग्राम  कापरआक्सीक्लोराईड 50% घुलनशील चूर्ण व् 50 ग्राम एग्रीमाईसीन या 7.5 ग्राम स्ट्रेपटोसाइक्लीन प्रति हेक्टर  की दर से 600 -800 लीटर पानी में घोलकर दो छिडकाव 20 से 25 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए साथ ही उपचारित बीजो का ही बुवाई हेतु प्रयोग करना चाहिएI

कीट प्रबंधन

कपास की फसल में कौन कौन से कीट लगने की संभावना रहती है और उन पर किस तरह से हम नियंत्रण कर सकते है?
कपास की फसल पर कई तरह के कीटो द्वारा नुकसान पहुचाया जाता है जैसे की हरा फुदका या जैसिड, सफ़ेद मख्खी माहू ,तेला,मिस्सी या थ्रिप्स एवं गूलर भेदक भी लगते है इनके नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटोफास 25 ई.सी.1.25 लीटर गूलर भेद कीट हेतु ट्रायकोफास 40 ई. सी. 1.50 लीटर सफ़ेद मख्खी हेतु रसायन 250 से 300 लीटर पानी में घोलकर नेपसेक मशीन से प्रति हेक्टर छिडकाव करना चाहिए अन्य किसी भी कीटनाशक का प्रयोग कर सकते हैI

फसल कटाई

जब फसल तैयार हो जाती है तो उसकी चुनाई एवं भण्डारण कैसे करे?
कपास की चुनाई प्रजातियों के अनुसार की जाती है चुनाई सुबह की ओस हटने के बाद ही पूर्ण खिले हुए गुलारो से  करनी चाहिए देशी कपास की चुनाई 8 से 10 दिन के अन्तराल पर  तथा अमेरिकन कपास की चुनाई 15 से 20 दिन के अन्तराल पर करनी चाहिएI  कीट ग्रसित कपास की चुनाई अलग करना चाहिए कपास के साथ में पत्तियों आदि नहीं रहनी चाहिए कपास साफ सुथरी रखनी चाहिए कपास का भण्डारण करने से पहले चुनी गई कपास को अच्छी तरह से सुखा लेनी चाहिए इसके साथ साथ भण्डारण गृह भी अच्छी तरह से सुखा होना चाहिए भण्डारण गृह में चूहों का प्रकोप नहीं होना चाहिए अच्छी तरह सुखी कपास को भण्डार में रखना चाहिएI

पैदावार

कपास की फसल से प्रति हेक्टर कितनी पैदावार प्राप्त हो सकती है?

कपास की उपज प्रजातियों के आधार पर अलग अलग पाई जाती है - देशी कपास में 15-16 कुन्तल प्रति हेक्टर उपज प्राप्त होती है तथा अमेरिकन कपास में 12-15 कुन्तल प्रति हेक्टर उपज प्राप्त होती हैI
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